कहानी संग्रह >> वीर बालिकाएँ वीर बालिकाएँहनुमानप्रसाद पोद्दार
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साहसी बालिकाओँ की प्रेरणात्मक कथाएँ
विद्युल्लता
बात उस समय की है, जब अलाउद्दीन ने चित्तौड़ की महारानी पद्मिनी को पाने के लिये चित्तौड़ पर दूसरी बार बहुत बड़ी सेना के साथ आक्रमण किया था। पहली बार वह पराजित होकर लौट गया। इस दूसरी बार का उसका आक्रमण बड़ी भारी तैयारी से हुआ था। अन्त में इसी आक्रमण में चित्तौड़ के वीर राजपूत केसरिया वस्त्र पहनकर युद्ध में मारे गये और महारानी पद्मिनी तथा दूसरी राजपूत स्त्रियाँ चिता बनाकर उसमें अपने सतीत्व की रक्षा के लिये जीवित ही जल गयी थीं।
चित्तौड़ के एक सरदार की कन्या का नाम विद्युल्लता था। उसकी सगाई समरसिंह नाम के एक राजपूत सरदार से हुई थी। दोनों के विवाह की तैयारी हो ही रही थी कि चित्तौड़ पर अलाउद्दीन ने आक्रमण कर दिया। समरसिंह को अपने देश की रक्षा के लिये युद्ध में जाना पड़ा। विद्युल्लता उन दिनों प्राय: एकान्त में रहती और अपने भावी पति का चिन्तन किया करती थी।
एक दिन चाँदनी रात में समरसिंह विद्युल्लता के घर आया और अकेले में उससे मिलकर बोला- 'मुझे तो ऐसा लगता है कि अब थोड़े दिनों में ही चित्तौड़ मुसलमानों के हाथ में चला जायगा। मुसलमान सैनिक बहुत अधिक हैं, इसलिये राजपूतों को अन्त में हारना ही पड़ेगा। ऐसी अवस्था में मैं चाहता हूँ कि हम-तुम चित्तौड़ से कहीं दूर भाग चलें।’
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