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वीर बालिकाएँ

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :70
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9732

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साहसी बालिकाओँ की प्रेरणात्मक कथाएँ

मेडलीन उस समय केवल चौदह वर्ष की बालिका थी; किंतु वह घबरायी नहीं। उसने दोनों सिपाहियों को उनकी कायरता के लिये धिक्कारा और समझाया। अन्त में वे उसकी बात मानने को तैयार हो गये। बालिका मेडलीन किले की सेनापति बन गयी। उसने किले में जो स्थान कमजोर थे, उनको ठीक कराया। स्त्रियों को बंदूकें देकर जहाँ-तहाँ खड़ा किया।

लुटेरों ने समझा था कि किले में अब केवल स्त्रियाँ होंगी। वे किले को लूटना बहुत सीधा काम समझे हुए थे। लेकिन जब वे किले के पास पहुँचे तो किले से बंदूकों ने आग उगलना आरम्भ कर दिया। कई लुटेरे गोली खाकर लुढ़क गये। दूसरे भागकर दूर जा छिपे। मेडलीन ने देखा कि एक तोप भी किले में है। उसने तोप को साफ करके उसमें गोला-बारूद भरा और एक बार दाग दी। तोप का शब्द सुनकर लुटेरे आस-पास के जंगलों में भागकर छिप गये।

मेडलीन ने सोचा था कि तोप का शब्द सुनकर पास के गाँव से कोई सहायता आ जायगी। दिन भर बीत गया, परंतु कोई सहायता नहीं आयी। संध्या को नदी में एक नाव आती दीख पड़ी। इस नाव में कोई सहायता नहीं आ रही थी। इसमें तो मि. फातेन नाम के एक किसान थे, जो अपने स्त्री-बच्चों के साथ इस किले में अतिथि होने आ रहे थे। मेडलीन को डर लगा कि वन में छिपे लुटेरे उसके अतिथि को मार न डालें। उसने कंधे पर भरी बंदूक उठायी और किले से बाहर निकल गयी। नदी तक अकेली जाकर वह अतिथियों को किले में सुरक्षित ले आयी।

रात को एक दूसरे किले का अफसर सैनिकों के साथ वहाँ सहायता करने आ गया। बालिका मेडलीन उस समय तक थकावट से चूर हो गयी थी। वह एक क्षण को भी बैठ नहीं सकी। उस अफसर को किले का नायकत्व देकर तब वह एक कुर्सी पर गिर पड़ी। सबेरे उस अफसर ने अपने सैनिकों की सहायता से लुटेरों ने जिन लोगों को पकड़ रखा था, सबको छुड़ा लिया।

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