नई पुस्तकें >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 1 प्रेमचन्द की कहानियाँ 1प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पहला भाग
कहते हैं, एक दिन सबके दिन फिरते हैं। टामी के दिन भी नदी में कूदते ही फिर गये। कूदा था जान बचाने के लिए, हाथ लग गए मोती। तैरता हुआ उस पार पहुँचा, तो वहाँ उसकी चिरसंचित अभिलाषाएँ मूर्तिमयी हो रही थीं।
एक विस्तृत मैदान था। जहाँ तक निगाह जाती। हरियाली की छटा दिखाई देती। कहीं नालों का मधुर कलकल था, कहीं झरनों का मंद गान; कहीं वृक्षों के सुखद पुंज, कहीं रेत के सपाट मैदान; बड़ा सुरम्य मनोहर दृश्य था।
यहाँ बड़े तेज नखों वाले पशु थे, जिनकी सूरत देखकर टामी का कलेजा दहल उठता। उन्होंने टामी की कुछ परवाह न की। वे आपस में नित्य लड़ा करते; नित्य खून की नदी बहा करती थी। टामी ने देखा, यहाँ इन भंयकर जंतुओं से पेश न पा सकूँगा। उसने कौशल से काम लेना शुरू किया। जब दो लड़नेवाले पशुओं में एक घायल और मुर्दा होकर गिर पड़ता, तो टामी लपक कर मांस का टुकड़ा ले भागता और एकांत में बैठकर खाता। विजयी पशु विजय उन्माद में उसे तुच्छ समझकर कुछ न बोलता।
अब क्या था, टामी के पौ-बारह हो गए। सदा दिवाली रहने लगी। न गुड़ की कमी थी, न गेहूँ की। नित नए पदार्थ उड़ाता, और वृक्षों के नीचे आनन्द से सोता। उसने ऐसे सुख-स्वर्ग की कल्पना भी न थी। वह मरकर नहीं, जीते-जी स्वर्ग पा गया।
थोड़े ही दिनों में पौष्टिक पदार्थों के सेवन से टामी की चेष्टा ही कुछ और हो गई। उसका शरीर तेजस्वी और सुसंगठित हो गया। अब वह छोटे-मोटे जीवों पर स्वयं हाथ साफ करने लगा। जंगल के जीव-जंतु तब चौंके, और उसे वहाँ से भगा देने का प्रयत्न करने लगे। टामी ने एक नई चाल चली। वह किसी पशु से कहता, तुम्हारा फलाँ शत्रु तुम्हें मार डालने की तैयारी कर रहा है। किसी से कहता, फलाँ तुमको गाली देता था। जंगल के जंतु उसके चकमे में आकर आपस में लड़ जाते और टामी की चाँदी हो जाती। अंत में यहाँ तक नौबत पहुँची कि बड़े-बड़े जंतुओं का नाश हो गया। छोटे-छोटे पशुओं को उससे मुकाबला करने का साहस न होता। उसकी उन्नति और शक्ति देखकर उन्हें ऐसा प्रतीत होने लगा, मानो यह विचित्र जीव आकाश से हमारे ऊपर शासन करने के लिए भेजा गया है।
टामी भी अपनी शिकारबाजी के जौहर दिखाकर उनकी इस भ्रांति को पुष्ट किया करता। वह बड़े गर्व से कहता–परमात्मा ने मुझे तुम्हारे ऊपर राज्य करने के लिए भेजा है। यह ईश्वर की इच्छा है। तुम आराम से घरों में पड़े रहो, मैं तुमसे कुछ न बोलूँगा, केवल तुम्हारी सेवा करने के पुरस्कार-स्वरूप तुममें से एक आध का शिकार कर लिया करूँगा। आखिर मेरे भी तो पेट है; बिना आहार के कैसे जीवित रहूँगा? वह अब बड़ी शान से जंगल में चारों ओर गौरवान्वित दृष्टि से ताकता हुआ विचरण करता।
टामी को अब कोई चिंता थी, तो यह कि इस देश में मेरा कोई मुद्दई न उठ खड़ा हो। वह नित्य सजग और सशस्त्र रहने लगा। ज्यों-ज्यों दिन गुजरते थे, और उसके सुख-भोग का चसका बढ़ता जाता था, त्यों-त्यों उसकी चिन्ता बढ़ती थी। वह अब बहुधा रात को चौंक पड़ता, और किसी अज्ञात शत्रु के पीछे दौड़ता। अक्सर ‘अंधा कूकुर बतासे भूके' वाली लोकोक्ति को चरितार्थ करता; वन के पशुओं से कहता–ईश्वर न करे, तुम किसी दूसरे शासक के पंजे में फँस जाओ। वह तुम्हें पीस डालेगा। मैं तुम्हारा हितैषी हूँ। सदैव तुम्हारी शुभ कामना में मग्न रहता हूँ। किसी दूसरे से यह आशा मत रखो। पशु एक स्वर से कहते–जब तक हम जिएँगे, आपके ही अधीन रहेंगे !
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