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प्रेमचन्द की कहानियाँ 8

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9769

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का आठवाँ भाग


मैंने इत्मीनान दिलाया- आज चिल्ला लेने दो, कल सबसे पहला यह काम करूँगा कि इसे घर से निकाल बाहर करूँगा, चाहे कसाई को देना पड़े।

‘और लोग न जाने कैसे बकरियां पालते हैं।’

‘बकरी पालने के लिए कुत्ते का दिमाग चाहिए।’

सुबह को बिस्तर से उठकर इसी फिक्र में बैठा था कि इस काली बला से क्योंकर मुक्ति मिले कि सहसा एक गड़रिया बकरियों का एक गल्ला चराता हुआ आ निकला। मैंने उसे पुकारा और उससे अपनी बकरी को चराने की बात कही। गड़रिया राजी हो गया। यही उसका काम था। मैंने पूछा- क्या लोगे?

‘आठ आने बकरी मिलते हैं हजूर।’

‘मैं एक रुपया दूंगा लेकिन बकरी कभी मेरे सामने न आवे।’

गड़रिया हैरत में रह गया- मरकही है क्या बाबूजी?

‘नही, नहीं, बहुत सीधी है, बकरी क्या मारेगी, लेकिन मैं उसकी सूरत नहीं देखना चाहता।’

‘अभी तो दूध देती है?’

‘हां, सेर-सवा सेर दूध देती है।’

‘दूध आपके घर पहुंच जाया करेगा।’

‘तुम्हारी मेहरबानी।’

जिस वक्त बकरी घर से निकली है मुझे ऐसा मालूम हुआ कि मेरे घर का पाप निकला जा रहा है। बकरी भी खुश थी गोया कैद से छूटी है, गड़रिये ने उसी वक्त दूध निकाला और घर में रखकर बकरी को लिये चला गया। ऐसा बेगरज गाहक उसे जिन्दगी में शायद पहली बार ही मिला होगा।

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