कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 13 प्रेमचन्द की कहानियाँ 13प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तेरहवाँ भाग
‘जिसने चुमकारकर बुलाया, झट उसकी गोद में चला जाता है। ऐसा हँसता है कि तुमसे क्या कहूँ!’
‘कभी-कभी माँ की नजर भी लग जाया करती है।’
‘ऐ नौज काकी, भला कोई अपने लड़के को नजर लगाएगा!’
‘यही तो तू समझती नहीं। नजर आप ही लग जाती है।’
धनिया पानी लेकर आयी, तो बूटी उसके साथ बच्चे को देखने चली।
‘तू अकेली है। आजकल घर के काम-धंधे में बड़ा अंडस होता होगा।’
‘नहीं काकी, रुपिया आ जाती है, घर का कुछ काम कर देती है, नहीं अकेले तो मेरी मरन हो जाती।’
बूटी को आश्चर्य हुआ। रुपिया को उसने केवल तितली समझ रखा था।
‘रुपिया!’
‘हाँ काकी, बेचारी बड़ी सीधी है। झाडू लगा देती है, चौका-बरतन कर देती है, लड़के को सँभालती है। गाढ़े समय कौन, किसी की बात पूछता है काकी!’
‘उसे तो अपने मिस्सी-काजल से छुट्टी न मिलती होगी।’
‘यह तो अपनी-अपनी रुचि है काकी! मुझे तो इस मिस्सी-काजल वाली ने जितना सहारा दिया, उतना किसी भक्तिन ने न दिया। बेचारी रात-भर जागती रही। मैंने कुछ दे तो नहीं दिया। हाँ, जब तक जीऊँगी, उसका जस गाऊँगी।’
‘तू उसके गुन अभी नहीं जानती धनिया। पान के लिए पैसे कहाँ से आते हैं? किनारदार साड़ियाँ कहाँ से आती हैं?’
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