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प्रेमचन्द की कहानियाँ 17

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :281
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9778

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सत्रहवाँ भाग


साहब ने मुझसे पूछा- वेल वकील साहब, तुम शराब पीता है?

मैं इनकार न कर सका।

'तुमने रात शराब पी थी?'

मैं इनकार न कर सका।

'तुमने मेरे इस खानसामा से शराब ली थी?'

मैं इनकार न कर सका।

'तुमने रात को शराब पीकर बोतल और गिलास अपने सिर के नीचे छिपाकर रखा था?'

मैं इनकार न कर सका। मुझे भय था कि खानसामा कहीं खुल न पड़े; पर उलटे मैं ही खुल पड़ा।

'तुम जानता है, यह चोरी है !'

मैं इनकार न कर सका।

'हम तुमको मुअत्तल कर सकता है, तुम्हारा सनद छीन सकता है, तुमको जेल भेज सकता है।'

यथार्थ ही था।

'हम तुमको ठोकरों से मारकर गिरा सकता है। हमारा कुछ नहीं हो सकता !'

यथार्थ ही था।

'तुम काला आदमी वकील बनता है, हमारे ख़ानसामा से चोरी का शराब लेता है। तुम सुअर ! लेकिन हम तुमको वही सजा देगा, जो तुम पसंद करे। तुम क्या चाहता है।

मैंने काँपते हुए कहा- हुजूर, मुआफी चाहता हूँ।

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