| कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 18 प्रेमचन्द की कहानियाँ 18प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का अठारहवाँ भाग
मोती ने भी दीवार मे उसी जगह सींग मारा। थोडी सी मिट्टी गिरी और हिम्मत बढी। फिर तो दीवार में सींग लगा कर इस तरह जोर करने लगा, मानो किसी प्रतिद्वन्द्वी से लड रहा है। आखिर कोई दो घंटे की जोर आजमाई के बाद, दीवार ऊपर से एक हाथ गिर गयी। उसने दूनी शक्ति से दूसरा धक्का मारा, तो आधी दीवार गिर गयी। 
दीवार का गिरना था कि अधमरे से पड़े हुए सभी जानवर चेत उठे। तीनो घोड़ियाँ सरपट भाग निकलीं। फिर बकरियाँ निकलीं। उसके बाद भैंसे भी खिसक गयीं; पर गधे अभी तक ज्यों के त्यों खड़े थे। 
हीरा ने पूछा- तुम दोनों भाग क्यों नहीं जाते? 
एक गधे ने कहा- जो कहीं फिर पकड़ लिये जायँ। 
'तो क्या हरज हैं। अभी तो भागने का अवसर है।' 
'हमें तो डर लगता हैं। हम यहीं पड़े रहेंगे।' 
आधी रात से ऊपर जा चुकी थी। दोनों गधे अभी तक खड़े सोच रहे थे कि भागें या न भागे, और मोती अपने मित्र की रस्सी तोड़ने में लगा हुआ था। जब वह हार गया तो हीरा ने कहा- तुम जाओ, मुझे यहीं पड़ा रहने दो। शायद कहीं भेंट हो जाये। 
मोती ने आँखो में आँसू लाकर कहा- तुम मुझे इतना स्वार्थी समझते हो हीरा। हम और तुम इतने दिनों एक साथ रहे हैं। आज तुम विपत्ति में पड़ गये तो मैं तुम्हें छोडकर अलग हो जाऊँ। 
हीरा ने कहा- बहुत मार पड़ेगी। लोग समझ जायेंगे, यह तुम्हारी शरारत है। 
			
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