लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 22

प्रेमचन्द की कहानियाँ 22

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9783

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

54 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बाइसवाँ भाग


एक दिन हृदयनाथ ने जागेश्वरी से कहा– जी चाहता है घर छोड़ कर कहीं भाग जाऊँ। इसका कष्ट अब नहीं देखा जाता।

जागेश्वरी– मेरी तो भगवान से यही प्रार्थना है कि मुझे संसार से उठा लें। कहाँ तक छाती पर पत्थर की सिल रखूँ।

हृदयनाथ– किसी भाँति इसका मन बहलाना चाहिए, जिसमें शोकमय विचार आने ही न पायें। हम लोगों को दुःखी और रोते देख कर उसका दुःख और भी दारुण हो जाता है।

जागेश्वरी– मेरी तो बुद्धि कुछ काम नहीं करती।

हृदयनाथ– हम लोग यों ही मातम करते रहे तो लड़की की जान पर बन जायगी। अब कभी-कभी उसे लेकर सैर करने चली जाया करो। कभी-कभी थिएटर दिखा दिया, कभी घर में गाना-बजाना करा दिया। इन बातों से उसका दिल बहलता रहेगा।

जागेश्वरी– मैं तो उसे देखते ही रो पड़ती हूँ। लेकिन अब ज़ब्त करूँगी तुम्हारा विचार बहुत अच्छा है। बिना दिल-बहलाव के उसका शोक न दूर होगा।

हृदयनाथ– मैं भी अब उससे दिल बहलाने वाली बातें किया करूँगा। कल एक सैरबीं लाऊँगा, अच्छे-अच्छे दृश्य जमा करूँगा। ग्रामोफोन तो आज ही मँगवाये देता हूँ। बस उसे हर वक़्त किसी न किसी काम में लगाये रहना चाहिए। एकातंवास शोक-ज्वाला के लिए समीर के समान है।

उस दिन से जागेश्वरी ने कैलाश कुमारी के लिए विनोद और प्रमोद के सामान जमा करने शुरू किये। कैलासी माँ के पास आती तो उसकी आँखों में आँसू की बूँदें न देखती, होठों पर हँसी की आभा दिखाई देती। वह मुस्करा कर कहती– बेटी, आज थिएटर में बहुत अच्छा तमाशा होने वाला है, चलो देख आयें। कभी गंगा-स्नान की ठहरती, वहाँ माँ-बेटी किश्ती पर बैठकर नदी में जल विहार करतीं, कभी दोनों संध्या-समय पार्क की ओर चली जातीं। धीरे-धीरे सहेलियाँ भी आने लगीं। कभी सब की सब बैठ कर ताश खेलतीं। कभी गाती-बजातीं। पण्डित हृदयनाथ ने भी विनोद की सामग्रियाँ जुटायीं। कैलासी को देखते ही मग्न हो कर बोलते– बेटी आओ, तुम्हें आज काश्मीर के दृश्य दिखाऊँ; कभी कहते, आओ आज स्विट्जरलैंड की अनुपम झाँकी और झरनों की छटा देखें; कभी ग्रामोफोन बजा कर उसे सुनाते। कैलासी इन सैर-सपाटों का खूब आनन्द उठाती। इतने सुख से उसके दिन कभी न गुजरे थे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book