कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 22 प्रेमचन्द की कहानियाँ 22प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बाइसवाँ भाग
चौधरी के अशुभचिंतकों की कमी न थी। ऐसे अवसरों पर वे भी एकत्र हो जाते और साहु जी के बर्राने की पुष्टि करते। इस तरह फटकारें सुनकर बेचारे चौधरी अपना-सा मुँह लेकर लौट आते, परन्तु डेढ़ सौ रुपये से इस तरह हाथ धो लेना आसान न था। एक बार वह भी गरम पड़े। साहु जी बिगड़ कर लाठी ढूँढ़ने घर चले गए। अब सहुआइन जी ने मैदान लिया। प्रश्नोत्तर होते-होते हाथापाई की नौबत आ पहुँची। सहुआइन ने घर में घुस कर किवाड़ बन्द कर लिए। शोरगुल सुनकर गाँव के भलेमानुष जमा हो गए। उन्होंने दोनों को समझाया। साहुजी को दिलासा देकर घर से निकाला। वे परामर्श देने लगे कि इस तरह सिरफुड़ौवल से काम न चलेगा। पंचायत करा लो। जो कुछ तै हो जाए, उसे स्वीकार कर लो। साहुजी राजी हो गए। अलगू ने भी हामी भर ली।
पंचायत की तैयारियाँ होने लगीं। दोनों पक्षों ने अपने-अपने दल बनाने शुरू किए। इसके बाद तीसरे दिन उसी वृक्ष के नीचे फिर पंचायत बैठी। वही संध्या का समय था। खेतों में कौए पंचायत कर रहे थे। विवादग्रस्त विषय यह था कि मटर की फलियों पर उनका स्वत्व है या नहीं और जब तक यह प्रश्न हल न हो जाए, तब तक वे रखवाले की पुकार पर अपनी अप्रसन्नता प्रकट करना आवश्यक समझते थे। पेड़ की डालियों पर बैठी शुक-मंडली में यह प्रश्न छिड़ा हुआ था कि मनुष्यों को उन्हें बेमुरौवत कहने का क्या अधिकार है, जब उसे स्वयं अपने-अपने मित्रों को भी दगा देने में भी संकोच नहीं होता।
पंचायत बैठ गई तो रामधन मिश्र ने कहा– अब देरी क्यों? पंचों का चुनाव हो जाना चाहिए। बोलो चौधरी, किस-किसको पंच बदते हो।?
अलगू ने दीन भाव से कहा– समझू साहु ही चुन लें।
समझू खड़े हुए और कड़ककर बोले– मेरी ओर से जुम्मन शेख!
जुम्मन का नाम सुनते ही अलगू चौधरी का कलेजा धक-धक करने लगा, मानों किसी ने अचानक थप्पड़ मारा दिया हो। रामधन अलगू के मित्र थे। वे बात को ताड़ गए। पूछा– क्यों चौधरी, तुम्हें कोई उज्र तो नहीं।?
चौधरी ने निराश हो कर कहा– नहीं, मुझे क्या उज्र होगा?
अपने उत्तरदायित्व का ज्ञान बहुधा हमारे संकुचित व्यवहारों का सुधारक होता है। जब हम राह भूलकर भटकने लगते हैं, तब यही ज्ञान हमारा विश्वसनीय पथ-प्रदर्शक बन जाता है।
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