लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 24

प्रेमचन्द की कहानियाँ 24

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :134
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9785

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

289 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौबीसवाँ भाग


सूर्य भगवान् बड़े वेग से अस्ताचल की ओर दौड़े चले जाते थे, मानो वे इस मेघ-दल से भयभीत हो गए हों पर उनका भागना भी निकल हुआ। क्षण-भर में वे इस काले मेघ-सागर में विलीन हो गए। पृथ्वी पर अंधकार छा गया। यह अंधकार जनता की आशाओं का विमल प्रकाश था।

बादल फिर गरजने लगे और जल-विंदु पृथ्वी पर गिरने लगीं। असंख्य मनुष्य भक्ति, श्रद्धा, आनंद तथा अनुराग से उन्मत्त होकर राजा की ओर दौड़े और उनके चरणों पर गिर पड़े। राजा अभी तक मूर्त्ति के समान स्थिर खड़े थे। उनके मुख की कालिमा धुल-धुल कर बही जाती थी। उनका दिव्य स्वरूप श्याम घटा से इस प्रकार उदित होता आता था, जैसे बादलों में से चाँद निकलता है। उनके मुख पर इस समय एक अलौकिक प्रतिभा थी और नेत्रों से आत्मोत्सर्ग की ज्योति निकल रही थी।

उन्होंने प्रतिज्ञा की थी कि मुख की यह कालिमा अब ईश्वर की दयादृष्टि से ही धुलेगी और यह प्रतिज्ञा पूरी हुई; क्योंकि उनमें दृढ़ता थी, आत्मिक बल था और परमात्मा की दीनबंधुता पर पूरा-पूरा विश्वास था।

देश कभी इतना उल्लसित, इतना सुखी और इतना गौरवोन्मत्त न हुआ था।  

0 0 0

 

6. प्रतिशोध

माया अपने तिमंजिले मकान की छत पर खड़ी सड़क की ओर उद्विग्न और अधीर आंखों से ताक रही थी और सोच रही थी, वह अब तक आये क्यों नहीं? कहां देर लगायी? इसी गाड़ी से आने को लिखा था। गाड़ी तो आ गयी होगी, स्टेशन से मुसाफिर चले आ रहे हैं। इस वक्त तो कोई दूसरी गाड़ी नहीं आती। शायद असबाब वगैरह रखने में देर हुई, यार-दोस्त स्टेशन पर बधाई देने के लिए पहुँच गये हों, उनसे फुर्सत मिलेगी, तब घर की सुध आयेगी! उनकी जगह मैं होती तो सीधे घर आती। दोस्तों से कह देती, जनाब, इस वक्त मुझे माफ़ कीजिए, फिर मिलिएगा। मगर दोस्तों में तो उनकी जान बसती है!

मिस्टर व्यास लखनऊ के नौजवान मगर अत्यंत प्रतिष्ठित बैरिस्टरों में हैं। तीन महीने से वह एक राजीतिक मुकदमें की पैरवी करने के लिए सरकार की ओर से लाहौर गए हुए हें। उन्होंने माया को लिखा था- जीत हो गयी। पहली तारीख को मैं शाम की मेल में जरूर पहुंचूंगा। आज वही शाम है। माया ने आज सारा दिन तैयारियों में बिताया। सारा मकान धुलवाया। कमरों की सजावट के सामान साफ करायें, मोटर धुलवायी। ये तीन महीने उसने तपस्या के काटे थे। मगर अब तक मिस्टर व्यास नहीं आये। उसकी छोटी बच्ची तिलोत्तमा आकर उसके पैरों में चिमट गयी और बोली—अम्मां, बाबूजी कब आयेंगे?

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book