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प्रेमचन्द की कहानियाँ 25

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9786

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पच्चीसवाँ भाग


एक रात को मैं अपने ‘कैम्प’ में लेटा हुआ था। अफ्रीदियों से लड़ाई हो रही थी। दिन के थके-माँदे सैनिक गाफिल पड़े हुए थे। कैम्प में सन्नाटा था। लेटे-लेटे मुझे नींद आ गयी। जब मेरी नींद खुली, तो देखा कि छाती पर एक अफ्रीदी-जिसकी आयु मेरी आयु से लगभग दूनी होगी-सवार है और मेरी छाती में छुरा घुसेड़ने ही वाला है। मैं पूरी तरह से उसके अधीन था, कोई भी बचने का उपाय न था, किन्तु उस समय मैंने बड़े ही धैर्य से काम लिया और पश्तो भाषा में कहा- मुझे मारो नहीं, मैं सरकारी फौज में अफसर हूँ। मुझे पकड़ ले चलो, सरकार तुमको रुपया देकर मुझे छुड़ायेगी।

ईश्वर की कृपा से मेरी बात उसके मन में बैठ गयी। कमर से रस्सी निकाल कर मेरे हाथ-पैर बाँधे और फिर कन्धे पर बोझ की तरह लादकर खेमे से बाहर आया। बाहर मार-काट का बाजार गर्म था। उसने एक विचित्र प्रकार से चिल्लाकर कुछ कहा और मुझे कंधे पर लादे वह जंगल की ओर भागा। यह मैं कह सकता हूँ कि उसको मेरा बोझ कुछ भी न मालूम होता था, और बड़ी तेजी से भागा जा रहा था। उसके पीछे-पीछे कई आदमी, जो उसी के गिरोह के थे, लूट का माल लिए हुए भागे चले आ रहे थे।

प्रातः काल हम लोग एक तालाब के पास पहुँचे। तालाब बड़े-बड़े पहाड़ों से घिरा हुआ था। उसका पानी बड़ा निर्मल था और जंगली पेड़ इधर-उधर उग रहे थे। तालाब के पास पहुँचकर हम सब लोग ठहरे। बुड्ढे ने जो वास्तव में उस गिरोह का सरदार था, मुझे पत्थर पर डाल दिया। मेरी कमर में बड़ी जोर से चोट लगी। ऐसा मालूम हुआ कि कोई हड्डी टूट गई है, लेकिन ईश्वर की कृपा से कोई हड्डी टूटी न थी। सरदार ने मुझे पृथ्वी पर डालने के बाद कहा- क्यों, कितना रुपया दिलायेगा?

मैंने अपनी वेदना दबाते हुए कहा- पाँच सौ रूपये।

सरदार ने मुँह बिगाड़कर कहा- नहीं, इतना कम नहीं लेना। दो हजार से एक पैसा भी कम मिला तो तुम्हारी जान की खैर नहीं।

मैंने कुछ सोचते हुए कहा- सरकार, इतना रुपया काले आदमी के लिए नहीं खर्च करेगी।

सरदार ने छूरा बाहर निकालते हुए कहा- तब फिर क्यों कहा था कि सरकार इनाम देगी! ले, तो फिर यहीं, मर।

सरदार छुरा लिये मेरी तरफ बढ़ा।

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