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प्रेमचन्द की कहानियाँ 25

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9786

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पच्चीसवाँ भाग


मैं अभी तक इस स्त्री को नहीं समझ पाया। जितना ही समझने का यत्न करता हूँ, उतनी ही कठिन होती जाती है। नहीं समझ में आता है कि यह मानवी है या राक्षसी!

इसी समय सरदार साहब के लड़के ने आकर कहा- देखिए, वही औरत यह सोने की ताबीज दे गई।

सरदार साहब ने मेरी ओर देखकर कहा- देखा, असदखाँ, मैं तुमसे कहता न था। देखो आज भी ताबीज दे गई। न मालूम कितने ही ताबीज और कितनी ही दूसरी चीजें अर्जुन और निहाल को दे गयी होगी। कहता हूँ कि तूरया बड़ी विचित्र स्त्री है।

सरदार साहब से विदा होकर मैं घर चला। चौरस्ते से बुड्ढे की लाश हटा दी गई थी, पर वहाँ पहुँचकर मेरे रोयें खड़े हो गये। मैं आप-ही-आप एक मिनट वहाँ खड़ा हो गया। सहसा पीछे देखा। छाया की भाँति एक स्त्री मेरे पीछे-पीछे चली आ रही थी। मुझे खड़ा देखकर वह स्त्री रुक गयी और एक दूकान में कुछ खरीदने लगी।

मैंने अपने हृदय से प्रश्न किया- क्या वह तूरया है?

हृदय ने उत्तर दिया- हाँ, शायद वही है।

तूरया मेरा पीछा क्यों कर रही है? यही सोचता हुआ मैं घर पहुँचा और खाया खाकर लेटा, पर आज की घटनाओं का मुझ पर ऐसा असर पड़ा था कि किसी तरह भी नींद न आती थी। जितना ही मैं सोने का यत्न करता, उतना ही नींद मुझसे दूर भागती।

फौजी घड़ियाल ने बारह बजाये, एक बजाये, दो बजाये लेकिन मुझे नींद न थी। मैं करवटे बदलता हुआ सोने का उपक्रम कर रहा था। इसी उधेड़बुन में कब नींद ने मुझे धर दबाया मुझे भी याद नहीं।

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