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प्रेमचन्द की कहानियाँ 25

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9786

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पच्चीसवाँ भाग


तूरया की बात सुनकर मुझे उस अवसर पर भी हँसी आ गयी।

मैंने हँसते हुए कहा- अफ्रीदी मक्कार भी होते हैं, यह आज ही मुझे मालूम हुआ।

तूरया ने शान्त स्वर में कहा- तू मेरा खोया हुआ बड़ा भाई नाजिर है। यह जो तेरे हाथ में निशान है, वही बतला रहा है कि तू मेरा खोया हुआ भाई है। बचपन से ही मेरे हाथ में एक साँप गुदा हुआ था। और यही मेरी पहिचान फौजी रजिस्टर में भी लिखी हुई थी।

मैंने हँसकर कहा- तूरया, तू मुझे भुलावा नहीं दे सकती। मैं आज तुझे किसी तरह न छोड़ूंगा।

तूरया ने अपने हाथ से छुरा फेंककर कहा- सचमुच तू मेरा भाई है। अगर तुझे विश्वास नहीं होता, तो देख, मेरे दाहिने हाथ में भी ऐसा ही साँप गुदा है।

मैंने कुछ सोचते हुए कहा- तूरया, मैं तेरा विश्वास नहीं कर सकता, यह इत्तफाक की बात है।

तूरया ने कहा- मेरा हाथ छोड़ दे। मैं तुझ पर वार न करूँगी। अफ्रीदी झूठ नहीं बोलते।

मैंने उसका हाथ छोड़ दिया। वह पृथ्वी पर बैठ गयी और मेरी ओर देखने लगी। थोड़ी देर के बाद उसने कहा- अच्छा, तुझे अपने माँ-बाप का पता है?

मैंने सिर हिलाकर उत्तर दिया- नहीं, मैं सरकारी अनाथालय में पाला गया हूँ।

मेरी बात सुनकर तूरया उठ खड़ी हुई बोली- तब तू मेरा खोया हुआ बड़ा भाई नाजिर ही है। मेरे पैदा होने के एक साल पहले तू खोया था। मेरे माँ-बाप तब सरकारी फ़ौज पर छापा डालने के लिए आये थे और तू भी साथ था। मेरी माँ लड़ने में बड़ी होशियार थीं। तू उनकी पीठ से बँधा हुआ था और वे लड़ रही थीं। इसी समय एक गोली उनके पैर में लगी और वे गिरकर बेहोश हो गयीं? बस कोई तुझे खोल ले गया। मेरी माँ को मेरा बाप अपने कन्धे पर उठा लाया, लेकिन तुझे न खोज सका। बहुत तलाश किया, लेकिन कहीं भी पता न लगा। अम्माँ अक्सर तेरी चर्चा किया करती थीं। उनके हाथ में भी यही निशान था।

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