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प्रेमचन्द की कहानियाँ 26

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9787

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छब्बीसवाँ भाग


मैंने दबी जबान में कहा- जनाब को तकलीफ़ तो होगी मगर जरा फिर इसको खोलकर बतला दीजिए।

बड़े बाबू ने त्योरियों पर बल देते हुए कहा- जनाब, यह बार-बार का समझाना मुझे बुरा मालूम होता है। मैं इससे ज्यादा आसान तरीक़े पर खयालों को ज़ाहिर नहीं कर सकता। अपने को भूल जाना बहुत ही आम मुहावरा है। अपनी खुदी को मिटा देना, अपनी शख्सियत को फ़ना कर देना, अपनी पर्सनालिटी को खत्म कर देना। आपकी वज़ा-कज़ा से आपके बोलने, बात करने के ढंग से, आपके तौर-तरीकों से आपकी हिन्दियत मिट जानी चाहिए। आपके मज़हबी, अखलाकी और तमद्दुनी असरों का बिलकुल ग़ायब हो जाना ज़रुर हैं। मुझे आपके चेहरे से मालूम हो रहा है कि इस समझाने पर भी आप मेरा मतलब नहीं समझ सके। सुनिए, आप ग़ालिबन मुसलमान हैं। शायद आप अपने अक़ीदों में बहुत पक्के भी हों। आप नमाज़ और रोज़े के पाबन्द हैं?

मैंने फ़ख से कहा- मैं इन चीजों का उतना ही पाबन्द हूँ जितना कोई मौलवी हो सकता है। मेरी कोई नमाज़ क़ज़ा नहीं हुई। सिवाय उन वक्तों के जब मैं बीमार था।

बड़े बाबू ने मुस्कराकर कहा- यह तो आपके अच्छे अखलाक ही कह देते हैं। मगर इस दायरे में आकर आपको अपने अक़ीदे और अमल में बहुत कुछ काट-छांट करनी पड़ेगी। यहां आपका मज़हब मज़हबियत का जामा अख्तियार करेगा। आप भूलकर भी अपनी पेशानी को किसी सिजदे में न झुकाएं, कोई बात नहीं। आप भूलकर भी ज़कात के झगड़े में न फँसें, कोई बात नहीं। लेकिन आपको अपने मजहब के नाम पर फ़रियाद करने के लिए हमेशा आगे रहना और दूसरों को आमादा करना होगा। अगर आपके ज़िले में दो डिप्टी कलक्टर हिन्दू हैं और मुसलमान सिर्फ़ एक, तो आपका फ़र्ज होगा कि हिज एक्सेलेंसी गवर्नर की खिदमत में एक डेपुटेशन भेजने के लिए कौम के रईसों में आमादा करें। अगर आपको मालूम हो कि किसी म्युनिसिपैलिटी ने क़साइयों को शहर से बाहर दूकान रखने की तजवीज़ पास कर दी है तो आपका फ़र्ज होगा कि कौम के चौधरियों को उस म्युनिसिपैलिटी का सिर तोड़ने के लिए तहरीक करें। आपको सोते-जागते, उठते-बैठते जात-पाँत का राग अलापना चाहिए। मसलन इम्तहान के नतीजों में अगर आपको मुसलमान विद्यार्थियों की संख्या मुनासिब से कम नज़र आये तो आपको फौरन चांसलर के पास एक गुमनाम ख़त लिख भेजना होगा कि इस मामले में जरूर ही सख्ती से काम लिया गया है। यह सारी बातें उसी इनटुइशनवाली शर्त के भीतर आ जाती हैं। आपको साफ़-साफ़ शब्दों में या इशारों से यह काम करने से लिए हिदायत न की जाएगी। सब कुछ आपकी सूझ-सूझ पर मुनहसर होगा। आपमें यह जौहर होगा तो आप एक दिन जरूर ऊंचे ओहदे पर पहुँचेंगे। आपको जहां तक मुमकिन हो, अंग्रेजी में लिखना और बोलना पड़ेगा। इसके बग़ैर हुक्काम आपसे खुश न होंगे। लेकिन क़ौमी ज़बान की हिमायत और प्रचार की सदा आपकी ज़बान से बराबर निकलती रहनी चाहिए। आप शौक़ से अखबारों का चन्दा हज़म करें, मंगनी की किताबें पढ़ें चाहे वापसी के वक्त किताब के फट-चिंथ जाने के कारण आपको माफ़ी ही क्यों न मांगनी पड़े, लेकिन जबान की हिमायत बराबर जोरदार तरीकें से करते रहिए। खुलासा यह कि आपको जिसका खाना उसका गाना होगा। आपकों बातों से, काम से और दिल से अपने मालिक की भलाई में और मजबूती से उसको जमाये रखने में लगे रहना पड़ेगा। अगर आप यह खयाल करते हों कि मालिक की खिदमत के ज़रिये कौम की खिदमत की करूंगा तो यह झूठ बात है, पागलपन है, हिमाक़त है। आप मेरा मतलब समझ गये होंगे। फ़रमाइए, आप इस हद तक अपने को भूल सकते हैं?

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