कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 26 प्रेमचन्द की कहानियाँ 26प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छब्बीसवाँ भाग
रात को गिरधारी ने कुछ नहीं खाया। चारपाई पर पड़ा रहा। प्रातःकाल सुभागी चिलम भरकर ले गयी, तो वह चारपाई पर न था। उसने समझा, कहीं गये होंगे। लेकिन जब दो-तीन घड़ी दिन चढ़ आया और वह न लौटा, तो उसने रोना-धोना शुरू किया। गाँव के लोग जमा हो गए, चारों ओर खोज होने लगी, पर गिरधारी का पता न चला।
संध्या हो गई थी। अँधेरा छा रहा था। सुभागी ने दिया जलाकर गिरधारी के सिरहाने रख दिया था और बैठी द्वार की ओर तार रही थी कि सहसा उसे पैरों की आहट मालूम हुई। सुभागी का हृदय धड़क उठा। वह दौड़कर बाहर आयी इधर-उधर ताकने लगी। उसने देखा कि गिरधारी बैलों की नाँद के पास सिर झुकाएँ खड़ा है।
सुभागी बोल उठी- घर आओ, वहाँ खड़े क्या कर रहे हो, आज सारे दिन कहाँ रहे?
यह कहते हुए वह गिरधारी की ओर चली। गिरधारी ने कुछ उत्तर न दिया। वह पीछे हटने लगा और थोड़ी दूर जाकर गायब हो गया। सुभागी चिल्लायी और मूर्च्छित होकर गिर पड़ी।
दूसरे दिन कालिकादीन हल लेकर अपने नए खेत पर पहुँचे, अभी कुछ अँधेरा था। वह बैलों को हल में लगा रहे थे कि यकायक उन्होंने देखा कि गिरधारी खेत की मेड़ पर खड़ा है। वही, मिर्जई, वही पगड़ी, वही सोंटा।
कालिकादीन ने कहा- अरे गिरधारी! मरदे आदमी, तुम यहाँ खड़े हो, और बेचारी सुभागी हैरान हो रही है। कहाँ से आ रहे हो?
यह कहते हुए बैलों को छोड़कर गिरधारी की ओर चले। गिरधारी पीछे हटने लगा और पीछेवाले कुएँ में कूँद पड़ा। कालिकादीन ने चीख मारी और हल-बैल वहीं छोड़कर भागा। सारे गाँव में शोर मच गया, लोग नाना प्रकार की कल्पनाएँ करने लगे! कालिकादीन को गिरधारी वाले खेतों में जाने की हिम्मत न पड़ी।
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