कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 26 प्रेमचन्द की कहानियाँ 26प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छब्बीसवाँ भाग
गोविंदी- हाँ; काली मिर्जई पहने थे।
सोम.- जूता भी पहने थे?
गोविंदी की छाती धाड़-धाड़ करने लगी। बोली- हाँ, जूता तो पहने थे। क्यों पूछते हो?
सोमदत्त ने जोर से हाथ मार कर कहा- हाय ज्ञानू! हाय!
गोविंदी घबरा कर बोली- क्या हुआ, दादा जी! हाय! बताते क्यों नहीं? हाय!
सोम.- अभी थाने से आ रहा हूँ। वहाँ उनकी लाश मिली है। रेल के नीचे दब गये! हाय ज्ञानू! मुझ हत्यारे को क्यों न मौत आ गयी?
गोविंदी के मुँह से फिर कोई शब्द न निकला। अंतिम 'हाय' के साथ बहुत दिनों तक तड़पता हुआ प्राण-पक्षी उड़ गया। एक क्षण में गाँव की कितनी ही स्त्रियाँ जमा हो गयीं। सब कहती थीं, देवी थी! सती थी!
प्रात:काल दो अर्थियाँ गाँव से निकलीं। एक पर रेशमी चुँदरी का कफन था, दूसरी पर रेशमी शाल का। गाँव के द्विजों में से केवल सोमदत्त साथ था। शेष गाँव के नीच जाति वाले आदमी थे। सोमदत्त ही ने दाह-क्रिया का प्रबंध किया था। वह रह-रह कर दोनों हाथों से अपनी छाती पीटता था और जोर-जोर से चिल्लाता था, हाय! हाय ज्ञानू!!
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