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प्रेमचन्द की कहानियाँ 29

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :182
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9790

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का उन्तीसवाँ भाग


साल-भर भजनसिंह चौधरी साहब के इलाके में छिपा रहा। एक ओर मुसलमान लोग उसकी टोह में लगे रहते थे, दूसरी ओर पुलिस। लेकिन चौधरी उसे हमेशा छिपाते रहते थे। अपने समाज के ताने सहे, अपने घरवालों का तिरस्कार सहा, पुलिस के वार सहे, मुल्लाओं की धमकियां सहीं, पर भजनसिंह की खबर किसी का कानों-कान न होने दी। ऐसे वफादार स्वामिभक्त सेवक को वह जीते जी निर्दय कनून के पंजे में न देना चाहते थे। उनके इलाके की छावनियों में कई बार तलाशियां हुईं, मुल्लाओं ने घर के नौकरों, मामाओं, लौंडियों को मिलाया, लेकिन चौधरी ने ठाकुर को अपने एहसानों की भांति छिपाये रक्खा। लेकिन ठाकुर को अपने प्राणों की रक्षा के लिए चौधरी साहब को संकट में पड़े देखकर असहय वेदना होती थी। उसके जी में बार-बार आता था, चलकर मालिक से कह दूं- मुझे पुलिस के हवाले कर दीजिए। लेकिन चौधरी साहब बार-बार उसे छिपे रहने की ताकीद करते रहते थे। जाड़ों के दिन थे। चौधरी साहब अपने इलाके का दौर कर रहे थे। अब वह मकान पर बहुत कम रहते थे। घरवालों के शब्द-बाणों से बचने का यही उपाय था। रात को खाना खाकर लेटे ही थे कि भजनसिंह आकर सामने खड़ा हो गया। उसकी सूरत इतनी बदल गई थी कि चौधरी साहब देखकर चौंक पड़े। ठाकुर ने कहा- सरकार अच्छी तरह है?

चौधरी- हां, खुदा का फजल है। तुम तो बिल्कुल पहचाने ही नहीं जाते। इस वक्त कहां से आ रहे हो?

ठाकुर- मालिक, अब तो छिपकर नहीं रहा जाता। हुक्म हो तो जाकर अदालत में हाजिर हो जाऊं। जो भाग्य में लिखा होगा, वह होगा। मेरे कारन आपको इतनी हैरानी हो रही है, यह मुझसे नहीं देखा जाता।

चौधरी- नहीं ठाकुर, मेरे जीते जी नहीं। तुम्हें जान-बूझकर भाड़ के मुंह में नहीं डाल सकता। पुलिस अपनी मर्जी के माफिक शहादतें बना लेगी, और मुफ्त में तुम्हें जान से हाथ धोना पड़ेगा। तुमने मेरे लिए बड़े-बड़े खतरे सहे हैं। अगर मैं तुम्हारे लिए इतना भी न कर सकूं, तो मुझसे कुछ मत कहना।

ठाकुर- कहीं किसी ने सरकार...

चौधरी- इसका बिल्कुल गम न करो। जब तक खुदा को मंजूर न होगा, कोई मेरा बाल भी बांका नहीं कर सकता। तुम अब जाओ, यहां ठहरना खतरनाक है।

ठाकुर- सुनता हूं, लोगो ने आपसे मिलना-जुलना छोड़ दिया है।

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