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प्रेमचन्द की कहानियाँ 30

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :137
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9791

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तीसवाँ भाग


सहेली उसके केश सँवारकर बोली- ''जैसे उषा काल से पहले कुछ अँधेरा हो जाता है, उसी प्रकार मिलाप के पहले प्रेमियों का मन अधीर हो जाता है।''

प्रभा बोली- ''नहीं बहिन, यह बात नहीं। मुझे शकुन अच्छे नहीं दिखाई देते। आज दिन-भर मेरी आँख फड़कती रही। रात को मैंने बुरे स्वप्न देखे हैं। मुझे शंका होती है कि आज अवश्य कोई-न-कोई विप्न पड़नेवाला है। तुम राणा भोजराज को जानती हो न?''

संध्या हो गई। आकाश पर तारों के दीपक जले। झालावार में बूढ़े-जवान सभी लोग बारात की अगवानी के लिए तैयार हुए। मर्दों ने पागें सँवारी, शस्त्र सजे। युवतियों ने बनाव-सिंगार किए और वे गाती-बजाती रनिवास की ओर चलीं। हज़ारों स्त्रियाँ छत पर बैठी बारात की राह देख रही थीं।

अचानक शोर मचा कि बारात आ गई। लोग सँभल बैठे, नगाड़ों पर चोटें पड़ने लगीं। सलामियाँ दगने लगीं। जवानों ने घोड़ों को एड़ लगाई। एक क्षण में सवारों की एक सेना राजभवन के सामने आकर खड़ी हो गई। लोगों ने देखा और सबको बड़ा आश्चर्य हुआ, क्योंकि यह मंदार की बारात नहीं थी, बल्कि राणा भोजराज की सेना थी। झालावार वाले अभी विस्मित खड़े ही थे; कुछ निश्चय न कर सके थे कि क्या करना चाहिए। इतने में चित्तौडवालों ने राज्यभवन को घेर लिया। तब झालावारी भी सचेत हुए। सँभलकर और तलवारें खींचकर और आक्रमणकारियों पर टूट पड़े! राणा महल में घुस गया। रनिवास में भगदड़ मच गई।

प्रभा सोलहों सिंगार किए सहेलियों के साथ बैठी थी। यह हलचल देखकर घबराई। इतने में रावसाहब हाँफते हुए आए और बोले- ''बेटी प्रभा! राणा भोजराज ने हमारे महल को घेर लिया है। तुम चटपट ऊपर चली जाओ और द्वार को बंद कर लो। अगर हम क्षत्रिय हैं तो एक चित्तौड़ी भी यहाँ से जीता न जाएगा।''

रावसाहब बात भी पूरी न करने पारा थे कि राणा कई वीरों के साथ आ पहुँचे और बोले- ''चित्तौडवाले तो सिर कटाने के लिए आए ही हैं। मगर वे राजपूत हैं तो राजकुमारी प्रभा को लेकर ही जाएँगे।''

वृद्ध रावसाहब की आँखों से ज्वाला निकलने लगी। वे तलवार खींचकर राणा पर झपटे। राणा ने वार बचा लिया और प्रभा से कहा- ''राजकुमारी, हमारे साथ चलेंगी?''

प्रभा सिर झुकाए राणा के सामने आकर बोली- ''हाँ, चलूँगी।''

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