कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 32 प्रेमचन्द की कहानियाँ 32प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बत्तीसवाँ भाग
लाला हरनामदास रात को भले-चंगे सोये लेकिन अपने बेटे की गुस्ताख़ियां और कुछ अपने कारबार की सुस्ती और मन्दी उनकी आत्मा के लिए भयानक कष्ट का कारण हो गयीं और चाहे इसी उद्विग्नता का असर हो, चाहे बुढापे का, सुबह होने से पहले उन पर लकवे का हमला हो गया। जबान बन्द हो गयी और चेहरा ऐंठ गया। हरिदास ड़ाक्टर के पास दौड़ा। ड़ाक्टर आये, मरीज़ को देखा और बोले- डरने की कोई बात नहीं। सेहत होगी मगर तीन महीने से कम न लगेंगे। चिन्ताओं के कारण यह हमला हुआ है इसलिए कोशिश करनी चाहिये कि वह आराम से सोयें, परेशान न हों और जबान खुल जाने पर भी जहां तक मुमकिन हो, बोलने से बचें।
बेचारी देवकी बैठी रो रही थी। हरिदास ने आकर उसको सान्त्वना दी, और फिर ड़ाक्टर के यहां से दवा लाकर दी। थोड़ी देर में मरीज को होश आया, इधर-उधर कुछ खोजती हुई-सी निगाहों से देखा कि जैसे कुछ कहना चाहते हैं और फिर इशारे से लिखने के लिए कागज मांगा। हरिदास ने कागज और पेंसिल रख दी, तो बूढ़े लाला साहब ने हाथों को खूब सम्हालकर लिखा- इन्तजाम दीनानाथ के हाथ में रहे।
ये शब्द हरिदास के हृदय में तीर की तरह लगे। अफ़सोस! अब भी मुझ पर भरोसा नहीं! यानी कि दीनानाथ मेरा मालिक होगा और मैं उसका गुलाम बनकर रहूँगा! यह नहीं होने का। काग़ज़ लिए देवकी के पास आये और बोले- लालाजी ने दीनानाथ को मैनेजर बनाया है, उन्हें मुझ पर इतना एतबार भी नहीं हैं, लेकिन मैं इस मौके को हाथ से न जाने दूंगा। उनकी बीमारी का अफ़सोस तो जरूर है मगर शायद परमात्मा ने मुझे अपनी योग्यता दिखलाने का यह अवसर दिया है। और इससे मैं जरूर फायदा उठाऊँगा।
कारखाने के कर्मचारियों ने इस दुर्घटना की खबर सुनी तो बहुत घबराये। उनमें कई निकम्मे, बेमसरफ़ आदमी भरे हुए थे, जो सिर्फ खुशामद और चिकनी-चुपड़ी बातों की रोटी खाते थे। मिस्त्री ने कई दूसरे कारखानों में मरम्मत का काम उठा लिया था रोज किसी-न-किसी बहाने से खिसक जाता था। फायरमैन और मशीनमैन दिन को झूठ-मूठ चक्की की सफाई में काटते थे और रात के काम करके ओवर टाइम की मजदूरी लिया करते थे। दीनानाथ जरूर होशियार और तजुर्बेकार आदमी था, मगर उसे भी काम करने के मुकाबिले में ‘जी हां’ रटते रहने में ज्यादा मजा आता था। लाला हरनामदास मजदूरी देने में बहुत हीले-हवाले किया करते थे और अक्सर काट-कपट के भी आदी थे। इसी को वह कारबार का अच्छा उसूल समझाते थे। हरिदास ने कारखाने में पहुँचते ही साफ शब्दों कह दिया कि तुम लोगों को मेरे वक्त में जी लगाकर काम करना होगा। मैं इसी महीने में काम देखकर सब की तरक्की करूंगा। मगर अब टाल-मटोल का गुजर नहीं, जिन्हें मंजूर न हो वह अपना बोरिया-बिस्तर सम्हालें और फिर दीनानाथ को बुलाकर कहा- भाई साहब, मुझे खूब मालूम है कि आप होशियार और सूझ-बूझ रखनेवाले आदमी हैं। आपने अब तक यह यहां का जो रंग देखा, वही अख्तियार किया है। लेकिन अब मुझे आपके तजुर्बे और मेहनत की जरूरत है। पुराने हिसाबों की जांच-पड़ताल किजिए। बाहर से काम मेरा जिम्मा है लेकिन यहां का इन्तजाम आपके सुपुर्द है। जो कुछ नफा होगा, उसमें आपका भी हिस्सा होगा। मैं चाहता हूँ कि दादा की अनुपस्थिति में कुछ अच्छा काम करके दिखाऊँ।
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