लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 34

प्रेमचन्द की कहानियाँ 34

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :146
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9795

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

428 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौंतीसवाँ भाग


यह कहकर हरदौल ने चौकी पर से पानदान उठा लिया और उसे राजा के सामने रखकर वीड़ा लेने के लिए हाथ बढ़ाया। हरदौल का खिला हुआ मुखडा देखकर राजा की ईर्प्या की आग और भी भड़क उठी। टुष्ट! मेरे घाव पर नमक छिड़कने आया है। मेरे मान और विश्वास को मिट्टी में मिलाने पर भी तेरा जी न भरा? मुझसे विजय का बीड़ा माँगता है, यह विजय का बीड़ा है पर तेरी विजय का नहीं, मेरी विजय का। इतना मन में कहकर जुझारसिंह ने बीड़े को हाथ में उठाया। वह एक क्षण तक कुछ सोचता रहा, फिर उसने मुस्कुराकर हरदौल को बीड़ा दे दिया। हरदौल ने सिर झुकाकर बीड़ा लिया उसे माथे पर चढ़ाया, एक बार बड़ी ही करुणा के साथ चारों ओर देखा और फिर वीड़े को मुँह में रख लिया। एक सच्चे राजपूत ने अपना पुरुषत्व दिखा दिया। विष हलाहल था, कंठ के नीचे उतरते ही हरदौल के मुखड़े पर मुर्दनी छा गई और आँखें बुझ गईं। उसने एक ठंडी साँस ली, दोनों हाथ जोड़कर जुझारसिंह को प्रणाम किया और वह जमीन पर बैठ गया। उसके ललाट पर पसीने की ठंडी-ठंडी बूंदें दिखाई दे रही थीं और साँस तेजी से चलने लगी थी, पर तेहरे पर प्रसन्नता और सन्तोष की झलक दिखाई देती थी।

जुझारसिंह अपनी जगह से जरा भी न हिला। उसके चेइरे पर वीर ईर्ष्या से भरी हुई मुस्कराहट छाई हुई थी, पर आँखों में आँसू भर आए थे। उजेले और अंधेरे का मिलाप हो गया था।

समाप्त

...Prev |

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book