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प्रेमचन्द की कहानियाँ 35

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :380
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9796

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पैंतीसवाँ भाग


किन्तु जब उसे ज्ञात हुआ कि रामचन्द्र ने समुद्र पर पुल बांध लिया तो उसका नशा हिरन हो गया। उस दिन उसे सारी रात नींद नहीं आयी।

रावण के दरबार में अंगद

रामचन्द्र ने समुद्र को पार करके लंका पर घेरा डाल दिया। दुर्ग के चारों द्वारों पर चार बड़े-बड़े नायकों को खड़ा किया। सुग्रीव को सारी सेना का सेनापति बनाया। आप और लक्ष्मण सुग्रीव के साथ हो गये। तेज दौड़ने वालों को चुन-चुनकर समाचार लाने और ले जाने के लिए नियुक्त किया। जिस नायक को कोई आज्ञा देनी होती, इन्हीं आदमियों द्वारा कहला भेजते थे। नगर के चारों द्वार बन्द हो गये। राक्षसों का बाहर निकलना दुर्गम हो गया। रसद का बाहर के देहातों से आना बन्द हो गया। लोग अन्दर भूखों मरने लगे।

रावण ने सोचा, अब तो रामचन्द्र की सेना लंका पर चढ़ आयी। मालूम नहीं; लड़ाई का फल क्या हो। एक बार सीता को सम्मत करने की अन्तिम चेष्टा कर लेनी चाहिये। अबकी उसने धमकी के बदले छल से काम लेने का निश्चय किया। एक कुशल कारीगर से रामचन्द्र की तस्वीर से मिलता-जुलता एक सिर बनवाया। वैसे ही धनुष और बाण बनवाये और इन चीजों को सीता जी के सामने ले जाकर बोला- यह लो, तुम्हारे पति का सिर है, जिस पर तुम जान देती थीं। मेरी सेना के एक आदमी ने इन्हें लड़ाई में मार डाला है और उनका सिर काटकर लाया है। रावण के बल का अनुमान तुम इसी से कर सकती हो। अब मेरा कहना मानो। मेरी रानी बन जाओ।

सीता धोखे में आ गयीं। सिर पीट-पीटकर रोने लगीं। संसार उनकी आंखों में अंधेरा हो गया। संयोग से विभीषण की पत्नी श्रमा उस समय अशोकवाटिका में मौजूद थी। सीताजी का शोकसंताप सुनकर वह दौड़ी आयी और पूछने लगी, क्या बात है? रावण ने देखा, अब भेद खुलना चाहता है, तो तुरन्त बनावटी सिर और धनुष वाण लेकर वहां से चल दिया। सीता जी ने रो-रोकर श्रमा से यह दुर्घटना बयान की। श्रमा हंसकर बोली- बहन, यह सब रावण की दगाबाजी है। वह सिर बनावटी होगा। तुम्हें छलने के लिए रावण ने यह चाल चली है। रामचन्द्र तो दुर्ग के चारों ओर घेरा डाले हुए हैं। लंका में खलबली मची हुई है। कोई दुर्ग के बाहर नहीं निकल सकता। यहां किसमें इतना बल है, जो रामचन्द्र से लड़ सके। उनके एक साधारण दूत ने लंका वालों के छक्के छुड़ा दिये, भला उन्हें कौन मार सकता है? श्रमा की बातों से सीता जी को आश्वासन मिला। समझ गयीं, यह रावण की दुष्टता थी।

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