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प्रेमचन्द की कहानियाँ 35

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :380
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9796

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पैंतीसवाँ भाग


मेघनाद ने क्रोध से आंखें निकालकर कहा- चचा साहब, तुम्हें लाज नहीं आती कि मुझे समझाने आये हो! देशद्रोह से बढ़कर संसार में दूसरा अपराध नहीं। जो आदमी शत्रु से मिलकर अपने घर और अपने देश का अहित करता है, उसकी सूरत देखना भी पाप है। आप मेरे सामने से चले जाइये।

विभीषण तो उधर लज्जित होकर चला गया, इधर लक्ष्मण ने सामने आकर मेघनाद को युद्ध का निमंत्रण दिया। लक्ष्मण को देखकर मेघनाद बोला- अभी दोचार दिन घाव की मरहमपट्टी और करवा लेते, कहीं आज घाव फिर न ताजा हो जाय। जाकर अपने बड़े भाई को भेज दो।

लक्ष्मण ने धनुष पर बाण च़ाकर कहा- ऐसे-ऐसे घावों की वीर लोग लेशमात्र चिंता नहीं करते। आज एक बार फिर हमारी और तुम्हारी हो जाय। तनिक देख लो कि शेर घायल होकर कितना भयावना हो जाता है। बड़े भाई साहब का मुकाबला तो तुम्हारे पिता ही से होगा।

दोनों वीरों ने तीर चलाने शुरू कर दिये। घन्घन्, तन्तन की आवाजें आने लगीं। मेघनाद पहले तो विजयी हुआ, लक्ष्मण का उसके वारों को काटना कठिन हो गया, किन्तु ज्यों-ज्यों समय बीतता गया, लक्ष्मण संभलते गये, और मेघनाद कमजोर पड़ता जाता था, यहां तक कि लक्ष्मण उस पर विजयी हो गये और एक बाण उसकी गर्दन पर ऐसा मारा कि उसका सिर कटकर अलग जा गिरा।

मेघनाद के गिरते ही राक्षसों के हाथपांव फूल गये। भगदड़ पड़ गयी। रावण ने यह समाचार सुना तो उसके मुंह से ठंडी सांस निकल गयी। आंखों में अंधेरा छा गया। प्रतिशोध की ज्वाला से वह पागल हो गया। राम और लक्ष्मण तो उसके वश के बाहर थे, सीताजी का वध कर डालने के लिए तैयार हो गया। तलवार लेकर दौड़ता हुआ अशोक वाटिका में पहुंचा। सीता जी ने उसके हाथ में नंगी तलवार देखी, तो सहम उठी; किन्तु रावण का मंत्री बड़ा बुद्धिमान था। वह भी उसके पीछेपीछे दौड़ता चला गया था। रावण को एक अबला स्त्री की जान पर उद्यत देखकर बोला- महाराज, धृष्टता क्षमा हो, स्त्री पर हाथ उठाना आपकी मर्यादा के विरुद्ध है। आप वेदों के पण्डित हैं। साहस और वीरता में आज संसार में आपका समान नहीं। अपने पद और ज्ञान का ध्यान कीजिये और इस कर्म से विमुख होइये। इन बातों ने रावण का क्रोध ठंडा कर दिया। तलवार म्यान में रख ली और लौट आया।

उसी समय मेघनाद की पतिव्रता स्त्री सुलोचना ने आकर कहा- महाराज, अब मैं जीवित रहकर क्या करूंगी। मेरे पति का सिर मंगवा दीजिये, उसे लेकर मैं सती हो जाऊंगी।

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