कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 35 प्रेमचन्द की कहानियाँ 35प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पैंतीसवाँ भाग
विभीषण को गद्दी पर बिठाकर रामचन्द्र ने हनुमान को सीता के पास भेजा। विभीषण पालकी लेकर पहले ही से उपस्थित थे। सीता जी के हर्ष का कौन अनुमान कर सकता है। इतने दिनों के कैद के बाद आज उन्हें आजादी मिली है। मारे हर्ष के उन्हें मूर्च्छा आ गयी, जब चेतना आयी तो हनुमान ने उनके चरणों पर सिर झुकाकर कहा माता! श्री रामचन्द्र जी आपकी प्रतीक्षा में बैठे हुए हैं। वह स्वयं आते, किन्तु नगर में आने से विवश हैं। सीता जी खुशी-खुशी पालकी पर बैठीं। रामचन्द्र से मिलने की खुशी में उन्हें कपड़ों की भी चिन्ता न थी। किन्तु विभीषण की रानी श्रमा ने उनके शरीर पर उबटन मला, सिर में तेल डाला, बाल गूंथे, बहुमूल्य साड़ी पहनायी और विदा किया। सवारी रवाना हुई। हजारों आदमी साथ थे।
रामचन्द्र को देखते ही सीता जी की आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे। वह पालकी से उतरकर उनकी ओर चलीं। रामचन्द्र अपनी जगह पर खड़े रहे। उनके चेहरे से खुशी नहीं जाहिर हो रही थी, बल्कि रंज जाहिर होता था। सीता निकट आ गयीं। फिर भी वह अपनी जगह पर खड़े रहे। तब सीता जी उनके हृदय की बात समझ गयीं। वह उनके पैरों पर नहीं गिरीं, सिर झुकाकर खड़ी हो गयीं। उनकी आंखों से आंसू बहने लगे।
एक मिनट के बाद सीता जी ने लक्ष्मण से कहा- भैया, खड़े क्या देखते हो। मेरे लिए एक चिता तैयार कराओ। जब स्वामी जी को मुझसे घृणा है, तो मेरे लिए आग की गोद के सिवा और कोई स्थान नहीं। दर्शन हो गये, मेरे लिए यही सौभाग्य की बात है। हाय! क्या सोच रही थी, और क्या हुआ।
यह बात न थी कि रामचन्द्र को सीता जी पर किसी प्रकार का संदेह था। वह भली प्रकार जानते थे कि सीताजी ने कभी रावण से सीधे मुंह बात नहीं की। सदैव उससे घृणा करती रहीं। किन्तु संसार को निर्मलहृदयता पर कैसे विश्वास आता? सीता जी भी मन में यह बात भली प्रकार समझती थीं। इसलिए उन्होंने अपने विषय में कुछ भी न कहा, जान देने के लिए तैयार हो गयीं। रामचन्द्र का कलेजा फटा जाता था, किन्तु विवश थे।
तनिक देर में चिता तैयार हो गयी। उसमें आग दी गयी, लपटें उठने लगीं। सीता जी ने रामचन्द्र को प्रणाम किया और चिता में कूदने चलीं। वहां सारी सेना एकत्रित थी। सीता जी को आग की ओर बढ़ते देखकर चारों ओर शोर मच गया। सब लोग चिल्ला चिल्लाकर कहने लगे- हमको सीता जी पर किसी प्रकार का सन्देह नहीं है! वह देवी हैं, हमारी माता हैं, हम उनकी पूजा करते हैं। हनुमान, अंगद, सुग्रीव इत्यादि सीता जी का रास्ता रोककर खड़े हो गये। उस समय रामचन्द्र को विश्वास हुआ कि अब सीता जी की पवित्रता पर किसी को सन्देह नहीं। उन्होंने आगे बढ़कर सीता जी को छाती से लगा लिया। सारा क्षेत्र हर्ष ध्वनि से गूंज उठा।
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