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प्रेमचन्द की कहानियाँ 35

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :380
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9796

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पैंतीसवाँ भाग


सीता जी ने और भी आश्चर्य में आकर पूछा- तुम कौन हो? क्या यह अंगूठी तुम्हीं ने गिरायी है? तुम्हारी सूरत से मालूम होता है कि तुम सज्जन और वीर हो। क्या बतला सकते हो कि तुम्हें अंगूठी कहां मिली?

हनुमान ने हाथ जोड़कर कहा- माता जी! मैं श्री रामचन्द्र जी के पास से आ रहा हूं। यह अंगूठी उन्हीं ने मुझे दी थी। मैं आपको देखकर समझ गया कि आप ही जानकी जी हैं। आपकी खोज में सैकड़ों सिपाही छूटे हुए हैं। मेरा सौभाग्य है कि आपके दर्शन हुए।

सीताजी का पीला चेहरा खिल गया। बोलीं- क्या सचमुच तुम मेरे स्वामीजी के पास से आ रहे हो? अभी तक वे मेरी याद कर रहे हैं?

हनुमान- आपकी याद उन्हें सदैव सताया करती है। सोते-जागते आप ही के नाम की रट लगाया करते हैं। आपका पता अब तक न था। इस कारण से आपको छुड़ा न सकते थे। अब ज्योंही मैं पहुंचकर उन्हें आपका समाचार दूंगा, वह तुरन्त लंका पर आक्रमण करने की तैयारी करेंगे।

सीता जी ने चिंतित होकर पूछा- उनके पास इतनी बड़ी सेना है, जो रावण के बल का सामना कर सके?

हनुमान ने उत्साह के साथ कहा- उनके पास जो सेना है, उसका एक-एक सैनिक एक-एक सेना का वध कर सकता है! मैं एक तुच्छ सिपाही हूं; पर मैं दिखा दूंगा कि लंका की समस्त सेना किस प्रकार मुझसे हार मान लेती है।

सीता जी- रामचन्द्र को यह सेना कहां मिल गयी। मुझसे विस्तृत वर्णन करो, तब मुझे विश्वास आये।

हनुमान- वह सेना राजा सुग्रीव की है, जो रामचन्द्र के मित्र और सेवक हैं। रामचन्द्र ने सुग्रीव के भाई बालि को मारकर किष्किन्धा का राज्य सुग्रीव को दिला दिया है। इसीलिए सुग्रीव उन्हें अपना उपकारक समझते हैं। उन्होंने आपका पता लगाकर आपको छुड़ाने में रामचन्द्र की सहायता करने का प्रण कर लिया है। अब आपकी विपत्तियां बहुत शीघ्र अन्त हो जायंगी।

सीता जी ने रोकर कहा- हनुमान! आज का दिन बड़ा शुभ है कि मुझे अपने स्वामी का समाचार मिला। तुमने यहां की सारी दशा देखी है। स्वामी से कहना, सीता की दशा बहुत दुःखद है; यदि आप उसे शीघ्र न छुड़ायेंगे तो वह जीवित न रहेंगी। अब तक केवल इसी आशा पर जीवित हैं, किन्तु दिनप्रतिदिन निराशा से उसका हृदय निर्बल होता जा रहा है।

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