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प्रेमचन्द की कहानियाँ 35

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :380
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9796

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पैंतीसवाँ भाग


रोशनुद्दौला- तो हम लोग जो कुछ कर रहे हैं, वह भी आपके फायदे के लिए ही कर रहे हैं। हम आपके सिर से सल्तनत का बोझ उतारकर आपको आजाद कर देंगे, तब आपके ऐश में खलल न पड़ेगा। आप बेफिक्र होकर हसीनों के साथ जिंदगी के मजे लूटिएगा।

बादशाह- तो क्या आप लोग मुझे तख्त से उतारना चाहते हैं?

रोशनुद्दौला- नहीं, आपको बादशाही की जिम्मेदारियों से आजाद कर देना चाहते हैं।

बादशाह- हजरत इमाम की कसम, मैं यह जिल्लत न बर्दाश्त करूँगा। मैं अपने बुजुर्गों का नाम न डुबाऊँगा।

रोशनुद्दौला- आपके बुजुर्ग़ों के नाम की फिक्र हमें आपसे ज्यादा है। आपकी ऐशपरस्ती बुजुर्ग़ों का नाम रोशन नहीं कर रही है।

बादशाह- (दीनता से) मैं वादा करता हूँ कि आइंदा से मैं आप लोगों को शिकायत का कोई मौका न दूँगा।

रोशनुद्दौला- नशेबाज के वादों पर कोई दीवाना ही यकीन कर सकता है।

बादशाह- तुम मुझे तख्त से जबरदस्ती नहीं उतार सकते।

रोशनुद्दौला- इन धमकियों की जरूरत नहीं। चुपचाप चले चलिए, आगे आपकी-सेज-गाड़ी मिल जायगी। हम आप को इज्जत के साथ रुखसत करेंगे।

बादशाह- आप जानते हैं, रियाया पर इसका क्या असर होगा?

रोशनुद्दौला- खूब जानता हूँ। आपकी हिमायत में एक उँगली भी न उठेगी। कल सारी सल्तनत में घी के चिराग जलेंगे।

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