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प्रेमचन्द की कहानियाँ 36

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :189
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9797

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छत्तीसवाँ भाग


रात का समय था। नादिर और लैला आरामगाह में बैठे हुए शतरंज की बाजी खेल रहे थे। कमरे में कोई सजावट न थी, केवल एक जाजिम बिछी हुई थी।

नादिर ने लैला का हाथ पकड़कर कहा- बस, अब यह ज्यादती नहीं, तुम्हारी चाल हो चुकी। यह देखो, तुम्हारा एक प्यादा पिट गया।

लैला- अच्छा यह शह! आपके सारे पैदल रखे रह गये और बादशाह पर शह पड़ गयी। इसी पर दावा था।

नादिर- तुम्हारे साथ हारने में जो मजा है, वह जीतने में नहीं।

लैला- अच्छा, तो गोया आप दिल खुश कर रहे हैं! शह बचाइए, नहीं दूसरी चाल में मात होती है।

नादिर- (अर्दब देकर) अच्छा अब सँभलकर जाना, तुमने मेरे बादशाह की तौहीन की है। एक बार मेरा फर्जी उठा तो तुम्हारे प्यादों का सफाया कर देगा।

लैला- बसंत की भी खबर है! यह शह, लाइए फर्जी अब कहिए। अबकी मैं न मानूँगी, कहे देती हूँ। आपको दो बार छोड़ दिया, अबकी हर्गिज न छोड़ूँगी।

नादिर- जब तक मेरा दिलराम (घोड़ा) है, बादशाह को कोई गम नहीं।

लैला- अच्छा यह शह? लाइए अपने दिलराम को! कहिए, अब तो मात हुई?

नादिर- हाँ जानेमन, अब मात हो गयी। जब मैं ही तुम्हारी अदाओं पर निसार हो गया, तब मेरा बादशाह कब बच सकता था।

लैला- बातें न बनाइए, चुपके से इस फरमान पर दस्तखत कर दीजिए। जैसा आपने वादा किया था।

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