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प्रेमचन्द की कहानियाँ 37

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9798

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सैंतीसवाँ भाग


वृन्दा की आंखों से आंसू जारी हो गए। उसने राजा को गोद में उठा लिया और कलेजे से लगाकर बोली- बेटा, अभी मैं नहीं आयी, फिर कभी आऊँगी।

राजा इसका मतलब न समझा। वह उसका हाथ पकड़कर खींचता हुआ घर की तरफ चला। माँ की ममता वृन्दा को दरवाजे तक ले गयी। मगर चौखट से आगे न ले जा सकी। राजा ने बहुत खींचा मगर वह आगे न बढ़ी। तब राजा की बड़ी-बड़ी आंखों में आँसू भर आये। उसके होठ फैल गये और वह रोने लगा।

प्रेमसिंह उसका रोना सुनकर बाहर निकल आया, देखा तो वृन्दा खड़ी है। चौंककर बोला- वृन्दा। मगर वृन्दा कुछ जबाब न दे सकीं।

प्रेमसिंह ने फिर कहा- बाहर क्यों खड़ी हो, अन्दर आओ। अब तक कहाँ थीं?

वृन्दा ने आंसू पोछते हुए जबाब दिया- मैं अन्दर नहीं आऊँगी।

प्रेमसिंह ने फिर कहा- आओ आओ, अपने बूढ़े बाप की बातों का बुरा न मानों।

वृन्दा- नहीं दादा, मैं अन्दर कदम नहीं रख सकती।

प्रेमसिंह- क्यों?

वृन्दा- कभी बताऊँगी। मैं तुम्हारे पास वह तेगा लेने आयी हूँ।

प्रेमसिंह ने अचरज में जाकर पूछा- उसे लेकर क्या करोगी?

वृन्दा- अपनी बेइज्जती का बदला लूँगी।

प्रेमसिंह- किससे।

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