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प्रेमचन्द की कहानियाँ 38

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :152
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9799

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का अड़तीसवाँ भाग


इस दुर्घटना के पश्चात् एक सप्ताह तक कालेज खुला रहा; किन्तु पण्डितजी को किसी ने हँसते नहीं देखा। वह विमन और विरक्त भाव से अपने कमरे में बैठे रहते थे। लूसी का नाम जबान पर आते झल्ला पड़ते थे।

इस साल की परीक्षा में पंडितजी फेल हो गये; पर इस कालेज में फिर न आये, शायद अलीगढ़ चले गये।

समाप्त

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