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प्रेमचन्द की कहानियाँ 39

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :202
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9800

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का उन्तालीसवाँ भाग


जाड़ों के दिन थे। खेतों में मटर की फलियाँ लगी हुई थीं। एक दिन तीनों लड़के खेत में घुस कर मटर उखाड़ने लगे। किसान ने देख लिया, दयावान आदमी था। खुद एक बोझा मटर उखाड़ कर विश्वेश्वरराय के घर पर लाया और ठकुराइन से बोला– काकी, लड़कों को डाँट दो किसी के खेत में न जाया करें।

जागेश्वरराय उसी समय अपने द्वार पर बैठ कर चीलम पी रहा था, किसान को मटर लाते देखा–तीनों बालक पिल्लों की भाँति पीछे-पीछे दौड़े चले आते थे। उसकी आँखें सजल हो गयीं। घर में जा कर पिता से बोला– चाची के पास अब कुछ नहीं रहा, लड़के भूखों मर रहे हैं।

रामे०– तुम त्रिया-चरित्र नहीं जानते। यह सब दिखावा है। जन्म भर की कमाई कहाँ उड़ गयी?

जागे०– अपना काबू चलते हुए कोई लड़कों को भूखों नहीं मार सकता।

रामे०– तुम क्या जानो। बड़ी चतुर औरत है।

जागे०– लोग हमीं लोगों को हँसते होंगे।

रामे०– हँसी की लाज है तो जा कर छाँह कर लो, खिलाओ-पिलाओ। है दम!

जागे०– न भर-पेट खायँगे, आधे ही पेट सही। बदनामी तो न होगी? चाचा से लड़ाई थी। लड़कों ने हमारा क्या बिगाड़ा है?

रामे०– वह चुड़ैल तो अभी जीती है न?

जागेश्वर चला आया। उसके मन में कई बार यह बात आयी थी कि चाची को कुछ सहायता दिया करूँ, पर उनकी जली-कटी बातों से डरता था। आज से उसने एक नया ढंग निकाला है। लड़कों को खेलते देखता तो बुला लेता, कुछ खाने को दे देता। मजूरों को दोपहर छुट्टी मिलती है। अब वह अवकाश के समय काम करके मजूरी के पैसे कुछ ज्यादा पा जाता। घर चलते समय खाने की कोई न कोई चीज लेता आता और अपने घरवालों की आँख बचा कर उन अनाथों को दे देता। धीरे-धीरे लड़के उससे हिल-मिल गये कि उसे देखते ही भैया-भैया कह कर दौड़ते दिन भर उसकी राह देखा करते। पहले माता डरती थी कि कहीं मेरे लड़कों को बहला कर ये महाशय पुरानी अदावत तो नहीं निकालना चाहते हैं। वह लड़कों को जागेश्वर के पास जाने और उनसे कुछ ले कर खाने से रोकती; पर लड़के शत्रु और मित्र को बूढ़ों से ज्यादा पहचानते हैं। लड़के माँ के मना करने की परवा न करते, यहाँ तक कि शनैः-शनैः माता को भी जागेश्वर की सहृदयता पर विश्वास आ गया।

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