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प्रेमचन्द की कहानियाँ 41

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :224
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9802

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का इकतालीसवाँ भाग


मैंने निर्भीक भाव से उत्तर दिया- मैं मानसरोवर के तट पर रहती हूँ। यहाँ बाजार में कुछ सामग्रियाँ लेने आयी थी, किंतु शहर में किसी का पता नहीं। उस स्त्री ने पीछे की ओर देखकर कुछ संकेत किया, जिस पर दो सवारों ने आगे बढ़कर मुझे पकड़ लिया, और मेरी बाँहों में रस्सियाँ डाल दीं। मेरी समझ में न आता था। कि मुझे किस अपराध का दंड दिया जा रहा है। बहुत पूछने पर भी किसी ने मेरे प्रश्नों का उत्तर न दिया। हाँ, अनुमान से यह प्रकट हुआ कि यह स्त्री यहाँ की रानी है। मुझे अपने विषय में तो कोई चिन्ता न थी, पर चिंता थी शेरसिंह की। वह अकेले घबरा रहे होंगे। भोजन का समय आ पहुँचा, कौन खिलाएगा? किस विपत्ति में आ फँसी! नहीं मालूम, विधाता अब मेरी क्या दुर्गति करेंगे। मुझ अभागिनी को इस दशा में भी शांति नहीं। इन्हीं मलिन विचारों में मग्न मैं सवारों के साथ आध घंटे तक चलती रही कि सामने एक ऊँची पहाड़ी पर एक विशाल भवन दिखाई दिया। ऊपर चढ़ने के लिए पत्थर काटकर चौड़े जीने बनाये गये थे। हम लोग ऊपर चढे़। वहाँ सैकड़ों ही आदमी दिखाई दिए। किंतु सब-के-सब काले वस्त्र धारण किए हुए थे। मैं जिस कमरे में लाकर रखी गई, वहाँ एक कुशासन के अतिरिक्त सजावट का और कोई सामान न था। मैं जमीन पर बैठकर अपने नसीब को रोने लगी, जो कोई यहाँ आता था। मुझपर करुण दृष्टिपात करके चुपचाप चला जाता था। थोड़ी देर में रानी साहबा आकर उसी कुशासन पर बैठ गईं। यद्यपि उनकी अवस्था पचास वर्ष से अधिक थी पर मुख पर अद्भुत् कांति थी। मैंने अपने स्थान से उठकर उनका सम्मान किया, और हाथ बाँधकर अपनी किस्मत का फैसला सुनने के लिए खड़ी हो गई।

ऐ मुसाफिर, रानी महोदया की त्योरियाँ देखकर पहले तो मेरे प्राण सूख गए, किंतु जिस प्रकार चंदन-जैसी कठोर वस्तु में मनोहर सुगंध छिपी होती है, उसी प्रकार उनकी कर्कशता और कठोरता के नीचे मोम के सदृश्य हृदय छिपा था। उनका पुत्र थोड़े ही दिन पहले युवावस्था ही में दगा दे गया था। उसी के शोक में सारा शहर मातम मना रहा था। मेरे पकड़े जाने का कारण यह था कि मैंने काले वस्त्र क्यों न धारण किए थे। यह वृत्तांत सुनकर मैं समझ गई कि जिस राजकुमार का शोक मनाया जा रहा है, वह वही युवक है जो मेरी गुफा में पड़ा हुआ है। मैंने उनसे पूछा- राजकुमार मुश्की घोड़े पर तो सवार नहीं थे?

रानी- हाँ-हाँ, मुश्की घोड़ा था। उसे मैंने उनके लिए अरब देश से मँगवा दिया था। क्या तूने उन्हें देखा है?

मैं- हाँ, देखा है ।

रानी ने पूछा- कब?

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