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प्रेमचन्द की कहानियाँ 41

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :224
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9802

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का इकतालीसवाँ भाग


एक बुढिया ने दरवाजा खोल दिया और मुझे खड़े देखकर लपकी हुई अंदर गई। मैं भी उसके साथ चला गया। देहलीज तय करते ही एक बड़े कमरे में पहुंचा। उस पर एक सफेद फर्श बिछा हुआ था। गावतकिये भी रखे थे। दीवारों पर खूबसूरत तसवीरें लटक रही थीं और एक सोलह-सत्रह साल का सुंदर नौजवान जिसकी अभी मसें भीग रही थीं मसनद के करीब बैठा हुआ हारमोनियम पर गा रहा था। मैं कसम खा सकता हूं कि ऐसा सुंदर स्वस्थ नौजवान मेरी नजर से कभी नहीं गुजरा। चाल-ढाल से सिख मालूम होता था। मुझे देखते ही चौंक पडा और हारमोनियम छोडकर खडा हो गया। शर्म से सिर झुका लिया और कुछ घबराया हुआ-सा नजर आने लगा। मैंने कहा- माफ कीजिएगा, मैंने आपको बडी तकलीफ दी। आप इस फन के उस्ताद मालूम होते हैं। खासकर जो चीज अभी आप गा रहे थे, वह मुझे पसन्द है।

नौजवान ने अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से मेरी तरफ देखा और सर नीचा कर लिया और होंठों ही में कुछ अपने नौसिखियेपन की बात कही। मैंने फिर पूछा- आप यहाँ कब से हैं?

नौजवान- तीन महीने के करीब होता है।

मैं- आपका शुभ नाम।

नौजवान- मुझे मेहर सिंह कहते हैं।

मैं बैठ गया और बहुत गुस्ताखाना बेतकल्लुफी से मेहर सिंह का हाथ पकडकर बिठा दिया और फिर माफी मांगी। उस वक्त की बातचीत से मालूम हुआ कि वह पंजाब का रहने वाला है और यहां पढने के लिए आया हुआ है। शायद डॉक्टरों ने सलाह दी थी कि पंजाब की आबहवा उसके लिए ठीक नहीं है। मैं दिल में तो झेंपा कि एक स्कूल के लड़के के साथ बैठकर ऐसी बेतकल्लुफी से बातें कर रहा हूँ, मगर संगीत के प्रेम ने इस खयाल को रहने न दिया! रस्मी परिचय क बाद मैंने फिर प्रार्थना की कि वही चीज छेडिए। मेहर सिंह ने आंखें नीची करके जवाब दिया कि मैं अभी बिल्कुल नौसिखिया हूं।

मैं- यह तो आप अपनी जबान से कहिये।

मेहरसिंह- (झेंपकर) आप कुछ फरमायें, हारमोनियम हाजिर है।

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