लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 46

प्रेमचन्द की कहानियाँ 46

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :170
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9807

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सैंतालीसवाँ अन्तिम भाग


कई महीने बीत गये। प्यारी के अधिकार में आते ही उस घर में जैसे बसन्त आ गया। भीतर-बाहर जहाँ देखिए, किसी निपुण प्रबंधक के हस्त-कौशल, सुविचार और सुरुचि के चिन्ह दिखते थे। प्यारी ने गृहयन्त्र की ऐसी चाभी कस दी थी कि सभी पुरजे ठीक-ठाक चलने लगे थे। भोजन पहले से अच्छा मिलता है और समय पर मिलता है। दूध ज्यादा होता है, घी ज्यादा होता है, और काम ज्यादा होता है। प्यारी न खुद विश्राम लेती है, न दूसरों को विश्राम लेने देती है। घर में ऐसी बरकत आ गयी है कि जो चीज माँगो, घर ही में निकल आती है। आदमी से ले कर जानवर तक सभी स्वस्थ दिखायी देते हैं। अब वह पहले की सी दशा नहीं है कि कोई चिथड़े लपेटे घूम रहा है, किसी को गहने की धुन सवार है। हाँ अगर कोई रुग्ण और चिन्तित तथा मलिन वेष में है, तो वह प्यारी है; फिर भी सारा घर उससे जलता है। यहाँ तक कि बूढ़े शिवदास भी कभी-कभी उसकी बदगोई करते हैं। किसी को पहर रात रहे उठना अच्छा नहीं लगता। मेहनत से सभी जी चुराते हैं। फिर भी यह सब मानते हैं कि प्यारी न हो तो घर का काम न चले। और तो और, दोनों बहनों में भी अब उतना अपनापन नहीं।

प्रातःकाल का समय था। दुलारी ने हाथों के कड़े ला कर प्यारी के सामने पटक दिये और भुन्नाई हुई बोली- लेकर इसे भी भण्डारे में बन्द कर दे।

प्यारी ने कड़े उठा लिये और कोमल स्वर से कहा- कह तो दिया, हाथ में रुपये आने दे, बनवा दूंगी। अभी ऐसा घिस नहीं गया है कि आज ही उतारकर फेंक दिया जाय।

दुलारी लड़ने को तैयार होकर आयी थी। बोली- तेरे हाथ में काहे को कभी रुपये आयेंगे और काहे को कड़े बनेंगे। जोड़-तोड़ रखने में मजा आता है न?

प्यारी ने हँस कर कहा- जोड-तोड़ रखती हूँ तो तेरे लिए कि मेरे कोई और बैठा हुआ है, कि मैं सबसे ज्यादा खा-पहन लेती हूँ। मेरा अनन्त कब का टूटा पड़ा है।

दुलारी- तुम न खाओ-पहनो, जस तो पाती हो। यहाँ खाने-पहनने के सिवा और क्या है? मैं तुम्हारा हिसाबकिताब नहीं जानती, मेरे कड़े आज बनने को भेज दो।

प्यारी ने सरल विनोद के भाव से पूछा- रुपये न हों, तो कहाँ से लाऊँ?

दुलारी ने उद्दंडता के साथ कहा- मुझे इससे कोई मतलब नहीं। मैं तो कड़े चाहती हूँ।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book