कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
स्वयं महाराजा ने पूछा-
तुम्हारा नाम?
उत्तर- कुनाल।
प्रश्न- पिता का नाम।
उत्तर- महाराज चक्रवर्ती
धर्माशोक।
सब
लोग उत्कण्ठा और विस्मय से देखने लगे कि अब क्या होता है, पर महाराज का
मुख कुछ भी विकृत न हुआ, प्रत्युत और भी गम्भीर स्वर से प्रश्न करने लगे।
प्रश्न- तुमने कोई अपराध
किया है?
उत्तर- अपनी समझ से तो
मैंने अपराध से बचने का उद्योग किया था।
प्रश्न- फिर तुम किस तरह
अपराधी बनाये गये?
उत्तर- तक्षशिला के
महासामन्त से पूछिये।
महाराज की आज्ञा होते ही
शासक ने अभिवादन के उपरान्त एक पत्र उपस्थित
किया, जो अशोक के कर में पहुँचा।
महाराज ने क्षण-भर में
महामात्य से फिरकर पूछा- यह आज्ञा-पत्र कौन ले गया
था, उसे बुलाया जाय।
पत्रवाहक
भी आया और कम्पित स्वर से अभिवादन करते हुए बोला- धर्मावतार, यह पत्र मुझे
महादेवी तिष्यरक्षिता के महल से मिला था, और आज्ञा हुई थी कि इसे शीघ्र
तक्षशिला के शासक के पास पहुँचाओ।
महाराज ने शासक की ओर
देखा। उसने हाथ जोड़कर कहा- महाराज, यही आज्ञा-पत्र
लेकर गया था।
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