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जयशंकर प्रसाद की कहानियां

जयशंकर प्रसाद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :435
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9810

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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ


“इस जंगल में क्यों?-उसने सशंक हँसकर कुछ अभिप्राय से पूछा।

“तुम किसी तरह का खटका न करो।”- नन्हकूसिंह ने हँसकर कहा।

“यह तो मैं उस दिन महारानी से भी कह आयी हूँ।”

“क्या, किससे?”

“राजमाता पन्नादेवी से “- फिर उस दिन गाना नहीं जमा। दुलारी ने आश्चर्य से देखा कि तानों में नन्हकू की आँखे तर हो जाती हैं। गाना-बजाना समाप्त हो गया था। वर्षा की रात में झिल्लियों का स्वर उस झुरमुट में गूँज रहा था। मंदिर के समीप ही छोटे-से कमरे में नन्हकूसिंह चिन्ता में निमग्न बैठा था। आँखों में नीद नहीं। और सब लोग तो सोने लगे थे, दुलारी जाग रही थी। वह भी कुछ सोच रही थी। आज उसे, अपने को रोकने के लिए कठिन प्रयत्न करना पड़ रहा था; किन्तु असफल होकर वह उठी और नन्हकू के समीप धीरे-धीरे चली आयी। कुछ आहट पाते ही चौंककर नन्हकूसिंह ने पास ही पड़ी हुई तलवार उठा ली। तब तक हँसकर दुलारी ने कहा- ”बाबू साहब, यह क्या? स्त्रियों पर भी तलवार चलायी जाती है!”

छोटे-से दीपक के प्रकाश में वासना-भरी रमणी का मुख देखकर नन्हकू हँस पड़ा। उसने कहा- ”क्यों बाईजी! क्या इसी समय जाने की पड़ी है। मौलवी ने फिर बुलाया है क्या?” दुलारी नन्हकू के पास बैठ गयी। नन्हकू ने कहा- ”क्या तुमको डर लग रहा है?”

“नहीं, मैं कुछ पूछने आयी हूँ।”

“क्या?”

“क्या,......यही कि......कभी तुम्हारे हृदय में....”

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