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धर्म एवं दर्शन >> कृपा

कृपा

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :49
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9812

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मानसिक गुण - कृपा पर महाराज जी के प्रवचन


साधक जब यह जिज्ञासा रखता है कि काम की वृत्ति का उपशमन कैसे हो सकता है? तो शास्त्र इसका उपाय बताते हुए यही कहते हैं कि 'ब्रह्मचर्य व्रत-उपवास और संयम के द्वारा काम पर नियंत्रण किया जा सकता है।' पर भक्त इस प्रश्न का उत्तर देते हुए कहता है कि भगवान् के रूप, गुण, लीला और चरित्र आदि के चिन्तन-मनन से काम का उपशमन हो जाता है। इसी प्रकार शास्त्र कहते हैं कि व्यक्ति यदि चाहे तो क्षमा के द्वारा धीरे-धीरे क्रोध को भी शान्त कर सकता है। मानस में इसीलिए ज्ञान-दीपक प्रसंग में क्षमा की तुलना वायु से करते हुए कहा गया कि --

तोस मरुत तब छमाँ जुड़ावै। 7/116/14


क्रोध को संयमित करने के लिये जैसे 'क्षमा' की आवश्यकता है, वैसे ही लोभ की वृत्ति पर विजय पाने के लिये दान देने की आवश्यकता है। व्यक्ति को जो कुछ भी प्राप्त होता है, यदि वह उसका उपयोग लोक-कल्याण के लिये दान देने में करता है तो स्वाभाविक है कि उसकी लोभ की वृत्ति भी घटने लगती है। क्योंकि वह दान देगा तो लोभ को छोड़कर ही तो देगा! शास्त्रों ने काम, क्रोध और लोभ इन तीनों को शान्त करने के लिये और भी अनेक उपाय बताये हैं, अब यह तो व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह किस उपाय से लाभ प्राप्त करता है।

शरीर के रोगों को मिटाने के लिये भी एलोपैथी, होम्योपैथी, नेचुरोपैथी आदि अनेक पद्धतियाँ हैं और प्रत्येक पद्धति में अनेकानेक दवाएँ हैं। यदि सही वैद्य मिल जाय, रोग का ठीक से निदान हो और दवा भी सही मिल जाय तो रोग कम हो सकता है, मिट सकता है। इसी प्रकार धर्मग्रन्थों में मन से संबद्ध रोगों के लिये भी यज्ञ, उपवास, दान, तप, दया, क्षमा तथा संयम आदि अनेक उपाय बताये गये हैं जिनका पालन करने से व्यक्ति के जीवन में परिवर्तन होता हुआ दिखायी देता है।

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