लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> प्रसाद

प्रसाद

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :29
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9821

Like this Hindi book 0

प्रसाद का तात्विक विवेचन


जब श्रीराम आ जायँ तो राज्य वापस दे देना, लेकिन श्रीभरत ने यह स्वीकार नहीं किया, वे चित्रकूट गये। पुन: वापस लौटकर आये और अयोध्या का राज्य चलाया। किसी ने पूछा कि गुरुजी तो पहले ही कह रहे थे, वही काम तो अब कर रहे हो! फिर सारे समाज को लेकर चित्रकूट क्यों गये? इसका उत्तर यही है कि गुरुजी ने कहा था कि राज्य ले लो और फिर राज्य उनको दे देना। इसका अर्थ है कि पहले भोजन कर लीजिए और बाद में भगवान् को भोग लगा दीजिए। ऐसा कैसे हो सकता है? श्रीभरत ने ऐसा नहीं किया। पहले राज्य स्वीकार नहीं किया, लेकिन चित्रकूट से लौटकर आये तो स्वीकार कर लिया, क्योंकि वह राज्य प्रसाद बन चुका था। सबको साथ में लेकर प्रसाद के रूप में राज्य के साथ चित्रकूट गये थे। वहाँ श्रीभरतजी की वही वृत्ति थी जो प्रसाद की होती है। श्रीभरत ने भगवान् से यही माँगा कि आप प्रसाद दीजिए! जिस प्रसाद के द्वारा व्यक्ति प्रसन्न हो जाता है-

प्रसन्नचेतसो ह्याशु बुद्धि: पर्यवतिष्ठते।। - गीता, 2/65

भरतजी ने कहा कि प्रभु! आप कृपा करके प्रसाद दीजिए और तब भगवान् ने अपनी पादुकाओं को दिया। श्रीभरतजी अयोध्या आये और उन पादुकाओं को राजसिंहासन पर बैठा दिया। सिंहासन पर स्वयं नहीं बैठे, पादुकाओं को बैठाया। पादुकाएँ तो पैर में पहनने की वस्तु हैं, परन्तु श्रीभरत ने उनको नहीं पहना, सिर पर धारण कर लिया। सिर विवेक का केन्द्र है। पादुकाओं से विवेक लिया। इसमें सूत्र यह है कि प्रभु ने शरीर बनाया, उसमें अगों के नाम भी चुन-चुनकर रखे गये। सबसे ऊँचे वाले भाग का नाम रखा गया सिर और सबसे नीचे वाले भाग का नाम रखा गया पद।

जो सबसे नीचे है वह है पैर या पद और सारे शरीर का भार भी उसी को उठाना है। जो पद स्वीकार करता है वह तो औरों का भार उठाने के लिए, हत्का करने के लिए स्वीकार करता है। ऐसा करना पद का सदुपयोग है, परन्तु यदि कहीं 'पद' सिर पर सवार हो गया, जैसा कि पद पाने वालों के सिर पर सवार हो जाया करता है। यदि आप पैरों से चलें तो ठीक चलेंगे, लेकिन यदि सिर के बल खड़े होकर आप चलें तो वह कसरत तो लगेगी, शीर्षासन तो लगेगा, लेकिन चलना नहीं होगा। श्रीभरतजी ने कहा कि प्रभु! जब सिर पर पद आना ही है तो यदि आपका पद आ जाय तब उसी में कल्याण है, अपना पद यदि आ जायेगा तो मद हो जायेगा और आपका पद, आपकी पादुकाएँ अगर आ जायँगी तो मद की कहीं पर भी रंचमात्र की आशंका नहीं रहेगी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book