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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा


इतने में मुझे ममीबाई का मुकदमा मिला। स्मॉल कॉज कोर्ट (छोटी अदालत) में जाना था। मुझसे कहा गया, 'दलाल को कमीशन देना पड़ेगा! ' मैंने साफ इनकार कर दिया।

'पर फौजदारी अदालत के सुप्रसिद्ध वकील श्री...., जो हर महीने तीन चार हजार कमाते हैं, भी कमीशन तो देते हैं।'

'मुझे कौन उनकी बराबरी करनी हैं? मुझको तो हर महीने 300 रुपये मिल जाये तो काफी हैं। पिताजी को कौन इससे अधिक मिलते थे?'

'पर वह जमाना लद गया। बम्बई का खर्च बड़ा हैं। तुम्हें व्यवहार की दृष्टि से भी सोचना चाहिये।'

मैं टस-से-मस न हुआ। कमीशन मैंने नहीं ही दिया। फिर भी ममीबाई का मुकदमा तो मुझे मिला। मुकदमा आसान था। मुझे ब्रीफ (मेहनताने) के रु. 30 मिले। मुकदमा एक दिन से ज्यादा चलने वाला न था।

मैंने पहली बार स्मॉल कॉज कोर्ट में प्रवेश किया। मैं प्रतिवादी की तरफ से था, इसलिए मुझे जिरह करनी था। मैं खड़ा तो हुआ, पर पैर काँपने लगे। सिर चकराने लगा। मुझे ऐसा लगा, मानो अदालत घुम रही हैं। सवाल कुछ सुझते ही न थे। जज हँसा होगा। वकीलों को तो मजा आया ही होगा। पर मेरी आँखो के सामने तो अंधेरा था, मैं देखता क्या?

मैं बैठ गया। दलाल से कहा, 'मुझसे यह मुकदमा नहीं चल सकेगा। आप पटेल को सौपिये। मुझे दी हुई फीस वापस ले लीजिये।'

पटेल को उसी दिन के 51 रुपये देकर वकील किया गया। उनके लिए तो वह बच्चो के खेल था।

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