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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा


सभा के परिणाम से मुझे संतोष हुआ। निश्चय हुआ कि ऐसी सभा हर महीने या हर हफ्ते की जाय। यह सभा न्यूनाधिक नियमित रुप से होती थी और उसमें विचारों का आदान-प्रदान होता रहता था। नतीजा यह हुआ कि प्रिटोरिया में शायद ही कोई ऐसा हिन्दुस्तानी रहा होगा, जिसे मैं पहचाने न लगा होऊँ अथवा जिसकी स्थिति से मैं परिचित न हो गया होऊँ।

हिन्दुस्तानियो की स्थिति का ऐसा ज्ञान प्राप्त करने का परिणाम यह आया कि मुझे प्रिटोरिया में रहने वाले ब्रिटिश एजेंड से परिचय करने की इच्छा हुई। मैं मि. जेकोब्स डि-वेट से मिला। उनकी सहानुभूति हिन्दुस्तानियो के साथ थी। उनका प्रभाव कम था स पर उन्होंने यथा सम्भव मदद करने और मिलना हो तब आकर मिल जाने के लिए कहा। रेलवे के अधिकारियों से मैंने पत्र-व्यवहार शुरू किया और बतलाया कि उन्ही के कायदो के अनुसार हिन्दुस्तानियो को ऊँचे दर्जे में यात्रा करने से रोका नहीं जा सकता। इसके परिणाम-स्वरुप यह पत्र मिला कि अच्छे कपड़े पहने हुए हिन्दुस्तानियो को ऊँचे दर्जे के टिकट दिये जायेंगे। इससे पूरी सुविधा नहीं मिली, क्योंकि किसने अच्छे कपड़े पहने हैं, इसका निर्णय तो स्टेशन मास्टर को ही करना था न?

ब्रिटिश एजेंड ने हिन्दुस्तानियो के बारे में हुए पत्र-व्यवहार संबंधी कई कागज पढ़ने को दिये। तैयब सेठ ने भी दिये थी। उनसे मुझे पता चला ऑरेंज फ्री स्टेट से हिन्दुस्तानियो को किस निर्दयता के साथ निकाल बाहर किया गया था। सारांश यह कि ट्रान्सवाल और ऑरेंज फ्री स्टेट के हिन्दुस्तानियो की आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक स्थिति का गहरा अध्ययन मैं प्रिटोरिया में कर सका। इस अध्ययन का आगे चल कर मेरे लिए पूरा उपयोग होने वाला हैं, इसकी मुझे जरा भी कल्पना नहीं थी। मुझे तो एक साल के अन्त में अथवा मुकदमा पहले समाप्त हो जाये तो उससे पहले ही स्वदेश लौट जाना था।

पर ईश्वर ने कुछ और ही सोच रखा था।

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