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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा


मैंने सभा को वस्तुस्थिति समझायी। पहला काम तो यह सोचा गया कि धारासभा के अध्यक्ष को ऐसा तार भेजा जाये कि वे बिल पर अधिक विचार करना मुलतवी कर दे। इसी आशय का तार सुख्यमंत्री सर जॉन रोबिनन्सन को भी भेजा और दूसरा दादा अब्दुल्ला के मित्र के नाते मि. एस्कम्ब को भेजा गया। इस तार के जवाब में अध्यक्ष का तार मिला कि बिल की चर्चा दो दिन तक मुलतवी रहेगी। सब खुश हुए।

प्रार्थना-पत्र तैयार किया गया। उसकी तीन प्रतियाँ भेजनी थी। प्रेस के लिए भी प्रतियाँ तैयार करनी थी। प्रार्थना-पत्र जितनी मिल सके उतनी सहियाँ लेनी थी। यह सारा काम एक रात में पूरा करना था। शिक्षित स्वयंसेवक और दूसरे लोग लभभग सारी रात जागे। उनमे अच्छे अक्षर लिखने वाले मि. आर्थर नाम के एक वृद्ध सज्जन थे। उन्होंने सुन्दर अक्षरों में प्रार्थना-पत्र की प्रति तैयार की। दूसरो ने उसकी दूसरी प्रतियाँ तैयार की। एक बोलता जाता और पाँच लिखते जाते थे। यो एक साथ पाँच प्रतियाँ लिखी गयी। व्यापारी स्वयंसेवक अपनी-अपनी गाड़ियाँ लेकर अथवा अपने खर्च से गाड़ियाँ किराये पर लेकर सहियाँ लेने के लिए निकल पड़े।

प्रार्थना-पत्र गया। अखबारों में छपा। उस पर अनुकूल टीकाये हुई। धारासभा पर भी असर हुआ। उसकी चर्चा भी खूब हुई। प्रार्थना-पत्र में दी गयी दलीलो का खंडन करनेवाले उत्तर दिये गये। पर वे देनेवालो को भी लचर जान पड़े। बिल को पास हो गया।

सब जानते थे कि यही नतीजा निकलेगा, पर कौम में नवजीवन का संचार हुआ। सब कोई यह समझे कि हम एक कौम हैं, केवल व्यापार सम्बन्धी अधिकारो के लिए ही नहीं, बल्कि कौम के अधिकार के लिए भी लड़ना हम सबका धर्म हैं।

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