लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

महात्मा गाँधी की आत्मकथा


वहाँ से मैं मद्रास गया। मद्रास तो पागल हो उठा। बालासुन्दरम के किस्से का सभा पर गहरा असर पड़ा। मेरे लिए मेरा भाषण अपेक्षाकृत लम्बा था। पूरा छपा हुआ था। पर सभा ने उसका एक एक शब्द ध्यानपूर्वक सुना। सभा के अन्त में उस 'हरी पुस्तिका' पर लोग टूट पड़े। मद्रास में संशोधन औप परिवर्धन के साथ उसकी दूसरी आवृति दस हजार की छपायी थी। उसका अधिकांश निकल गया। पर मैंने देखा कि दस हजार की जरूरत नहीं थी। मैंने लोगों के उत्साह का अन्दाज कुछ अधिक ही कर लिया था। मेरे भाषण का प्रभाव तो अंग्रेजी जानने वाले समाज पर ही पडा था। उस समाज के लिए अकेले मद्रास शहर में दस हजार प्रतियों कि आवश्यकता नहीं हो सकती थी।

यहाँ मुझे बड़ी से बड़ी मदद स्व. जी. परमेश्वरन पिल्लै से मिली। वे 'मद्रास स्टैंडर्ड' के सम्पादक थे। उन्होंने इस प्रश्न का अच्छा अध्ययन कर लिया था। वे मुझे अपने दफ्तर में समय-समय पर बुलाते थे और मेरा मार्गदर्शन करते थे। 'हिन्दू' के जी. सुब्रह्मण्यम से भी मैं मिला था। उन्होंने और डॉ. सुब्रह्यण्यम ने भी पूरी सहानुभूति दिखायी थी। पर जी. परमेश्वरन पिल्लै ने तो मुझे अपने समाचार पत्र का इस काम के लिए मनचाहा उपयोग करने दिया और मैंने निःसंकोच उसका उपयोग किया भी। सभा पाच्याप्पा हॉल में हुई थी और मेरा ख्याल हैं कि डॉ. सुब्रह्मण्यम उसके सभापति बने थे। मद्रास में सबके साथ विशेषकर अंग्रेजी में ही बोलना पड़ता था, फिर भी मैं बहुतो से इतना प्रेम और उत्साह पाया कि मुझे घर जैसा ही लगा। प्रेम किन बन्धनों के नहीं तोड़ सकता?

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book