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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा

क्लर्क और बैरा


कांग्रेस के अधिवेशन को एक-दो दिन की देर थी। मैंने निश्चय किया था कि कांग्रेस के कार्यालय में मेरी सेवा करूँ और अनुभव लूँ।

जिस दिन हम पहुँचे उसी दिन नहा-धोकर मैं कांग्रेस के कार्यालय में गया। श्री भूपेन्द्रनाथ बसु और श्री घोषाल मंत्री थे। मैं भूपेन्द्रबाबू के पास पहुँचा और सेवा की माँग की। उन्होंने मेरी ओर देखा और बोले, 'मेरे पास तो कोई काम नहीं हैं, पर शायद मि. घोषाल आपको कुछ काम दे सकेंगे। उनके पास जाइये। '

मैं घोषालबाबू के पास गया। उन्होंने मुझे ध्यान से देखा और जरा हँस कर मुझ से पूछा, 'मेरे पास तो क्लर्क का काम हैं, आप करेंगे?'

मैंने उत्तर दिया, 'अवश्य करुँगा। मेरी शक्ति से बाहर न हो, ऐसा हर काम करने के लिए मैं आपके पास आया हूँ।'

'नौजवान, यही सच्ची भावना हैं।' और पास बगल में खडे स्वयंसेवको की ओर देखकर बोले, 'सुनते हो, यह युवक क्या कह रहा हैं?'

फिर मेरी ओर मुडकर बोले, 'तो देखिये, यह तो है पत्रो का ढेर और यह मेरे सामने कुर्सी हैं। इस पर आप बैठिये। आप देखते हैं कि मेरे पास सैकड़ो आदमी आते रहते हैं। मैं उनसे मिलूँ या इन बेकार पत्र लिखने वालो को उनके पत्रो का जवाब लिखूँ? मेरे पास ऐसे क्लर्क नहीं हैं, जिनसे यह काम ले सकूँ। पर आप सबको देख जाइये। जिसकी पहुँच भेजना उचित समझे उसकी पहुँच भेज दीजिये। जिसके जवाब के बारे में मुझ से पूछना जरूरी समझे, मुझे पूछ लीजिये।' मैं तो इस विश्वास से मुग्ध हो गया।

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