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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा

किया-कराया चौपट


मि. चेम्बरलेन दक्षिण अफ्रीका से साढ़े तीन करोड़ पौण्ड लेने आये थे तथा अंग्रेजों का और हो सके तो बोअरों का मन जीतने आये थे। इसलिए भारतीय प्रतिनिधियों को नीचे लिखा ठंड़ा जवाब मिला :

'आप तो जानते हैं कि उत्तरदायी उपनिवेशों पर साम्राज्य सरकार का अंकुश नाममात्र ही हैं। आपकी शिकायतें तो सच्ची जान पड़ती हैं। मुझसे जो हो सकेगा, मैं करूँगा। पर आपको जिस तरह भी बने, यहाँ के गोरो को रिझाकर रहना हैं।'

जवाब सुनकर प्रतिनिधि ठंडे हो गये। मैं निराश हो गया। 'जब जागे तभी सबेरा' मानकर फिर से श्रीगणेश करना होगा। यह बात मेरे ध्यान में आ गयी और साथियों को मैंने समझा दी।

मि. चेम्बरलेन का जवाब क्या गलत था? गोलमोल बात कहने के बदले उन्होंने साफ बात कह दी। 'जिसकी लाठी उसकी भैंस' का कानून उन्होंने थोड़े मीठे शब्दों में समझा दिया।

पर हमारे पास लाठी थी ही कहाँ? हमारे पास तो लाठी के प्रहार झेलने लायक शरीर भी मुश्किल से थे।

मि. चेम्बरलेन कुछ हफ्ते ही रहने वाले थे। दक्षिण अफ्रीका कोई छोटा सा प्रान्त नहीं हैं। वह एक देश हैं, खण्ड हैं। अफ्रीका में तो अनेक अपखण्ड समाये हुए हैं। यदि कन्याकुमारी से श्रीनगर 1900 मील हैं तो डरबन से केपटाउन 1100 मील से कम नहीं हैं। इस खण्ड में मि. चेम्बरलेन को तूफानी दौरा करना था। वे ट्रान्सवाल के लिए रवाना हुए। मुझे वहाँ के भारतीयों का केस तैयार करके उनके सामने पेश करना था। प्रिटोरिया किस तरह पहुँचा जाय? वहाँ मैं समय पर पहुँच सकूँ, इसके लिए अनुमति प्राप्त करने का काम हमारे लोगों से हो सकने जैसा न था।

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