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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा

अंहिसा देवी का साक्षात्कार


मुझे तो किसानो की हालत की जाँच करनी थी। नील के मालिको के विरुद्ध जो शिकायते थी, उनमें कितनी सचाई है यह देखना था। इस काम के लिए हजारों किसानो से मिलने की जरूरत थी। किन्तु उनके संपर्क में आने से पहले मुझे यह आवश्यक मालूम हुआ कि मैं नील के मालिको की बात सुन लूँ और कमिश्नर से मिल लूँ। मुझे दोनों को चिट्ठी लिखी।

मालिको के मंत्री के साथ मेरी जो मुलाकात हुई, उसमें उसने साफ कह दिया कि आपकी गिनती परदेशी में होती है। आपको हमारे और किसानो के बीच दखल नहीं देना चाहिये। फिर भी अगर आपको कुछ कहना हो, तो मुझे लिखकर सूचित कीजिये। मैंने मत्री से नम्रतापूर्वक कहा कि मैं अपने को परदेशी नहीं मानता और किसान चाहे तो उनकी स्थिति की जाँच करने का मुझे पूरा अधिकार है। मैं कमिश्नर साहब से मिला। उन्होंने मुझे धमकाना शुरू कर दिया और मुझे सलाह दी कि मैं आगे बढ़े बिना तिरहुत छोड़ दूँ।

मैंने सारी बाते साथियो को सुनाकर कहा कि संभव है सरकार मुझे जाँच करने से रोके और जेल जाने का समय मेरी अपेक्षा से भी पहले आ जाये। अगर गिरफ्तारी होनी ही है, तो मुझे मोतीहारी में और संभव हो तो बेतिया में गिरफ्तार होना चाहिये और इसके लिए वहाँ जल्दी से जल्दी पहुँच जाना चाहिये।

चम्पारन तिरहुत विभाग का एक जिला है और मोतीहारी इसका मुख्य शहर। बेतिया के आसपास राजकुमार शुक्ल का घर था और उसके आसपास की कोठियो के किसान ज्यादा-से-ज्यादा कंगाल थे। राजकुमार शुक्ल को उनकी दशा दिखाने का लोभ था और मुझे अब उसे देखने की इच्छा थी।

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