लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

महात्मा गाँधी की आत्मकथा


इस अनुभवो में से एक, जिसका वर्णन मैंने स्त्रियो की कई सभाओ में किया है, यहाँ देना अनुचित न होगा। भीतिहरवा एक छोटा से गाँव था। उसके पास उससे भी छोटा एक गाँव था। वहाँ कुछ बहनो के कपड़े बहुत मैंले दिखायी दिये। इन बहनो को कपड़े बदलने के बारे में समझाने के लिए मैंने कस्तूरबाई से कहा। उसने उन बहनो से बात की। उनमें से एक बहन कस्तूरबाई को अपनी झोंपड़ी में ले गयी और बोली, 'आप देखिये, यहाँ कोई पेटी या आलमारी नहीं है कि जिसमे कपड़े बन्द हो। मेरे पास यही एक साड़ी है, जो मैंने पहन रखी है। इसे मैं कैसे धो सकती हूँ? महात्माजी से कहिये कि वे कपड़े दिलवाये। उस दशा में मैं रोज नहाने और कपडे बदलने को तैयार रहूँगी।' हिन्दुस्तान में ऐसे झोपडो में साज-सामान, संदूक-पेटी, कपड़े लत्ते, कुछ नहीं होते और असंख्य लोग केवल पहने हुए कपड़ो पर ही अपना निर्वाह करते है।

एक दूसरा अनुभव भी बताने-जैसा है। चम्पारन में बास या घास की कमी नहीं रहती। लोगों ने भीतिहरवा में पाठशाला का जो छप्पर बनाया था, वह बांस और घास का था। किसी ने उसे रात को जला दिया। सन्देह तो आसपास के निलहो के आदमियो पर हुआ था। फिर से बांस और घास का मकान बनाना मुनासिब मालूम नहीं हुआ। यह पाठशाला श्री सोमण और कस्तूरबाई के जिम्मे थी। श्री सोमण ने ईटों का पक्का मकान बनाने का निश्चय किया और उनके स्वपरिश्रम की छूत दूसरो को लगी, जिससे देखते-देखते ईटो का मकान तैयार हो गया और फिर से मकान के जलजाने का डर न रहा।

इस प्रकार पाठशाला, सफाई और औषधोपचार के कामों से लोगों में स्वयंसेवको के प्रति विश्वास और आदर की वृद्धि हुई औऱ उन पर अच्छा प्रभाव पड़ा।

पर मुझे खेद के साथ कहना पड़ता है कि इस काम को स्थायी रूप देने का मेरा मनोरथ सफल न हो सका। जो स्वयंसेवक मिले थे, वे एक निश्चित अवधि के लिए ही मिले थे। दूसरे नये स्वयंसेवको को मिलने में कठिनाई हुई और बिहार से इस काम के लिए योग्य सेवक न मिल सके। मुझे भी चम्पारन का काम पूरा होते-होते एक दूसरा काम, जो तैयार हो रहा था, घसीट ले गया। इतने पर भी छह महीनो तक हुए इस काम ने इतनी जड़ पकड ली कि एक नहीं तो दूसरे स्वरूप में उसका प्रभाव आज तक बना हुआ है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book