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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा


मैंने मजदूरो को हडताल करने की सलाह दी। यह सलाह देने से पहले मैं मजदूरो और मजदूर नेताओं के सम्पर्क में अच्छी तरह आया। उन्हें हड़ताल की शर्ते समझायी :

1. किसी भी दशा में शांति भंग न होने दी जाय।

2. जो मजदूर काम पर जाना चाहे उसके साथ जोर जबरदस्ती न की जाय।

3. मजदूर भिक्षा का अन्न न खाये।

4. हडताल कितनी ही लम्बी क्यों न चले, वे ढृढ रहे और अपने पास पैसा न रहे तो दूसरी मजदूरी करके खाने योग्य कमा लें।

मजदूर नेताओं ने ये शर्तं समझ ली औऱ स्वीकार कर ली। मजदूरो की आम सभा हुई औऱ उसमें उन्होंने निश्चय किया कि जब तक उनकी माँग मंजूर न की जाय अथवा उसकी योग्यता अयोग्यता की जाँच के लिए पंच की नियुक्ति न हो तब तक वे काम पर नहीं जायेंगे।

कहना होगा कि इस हडताल के दौरान में मैं श्री वल्लभभाई पटेल और श्री शंकरलाल बैकर को यथार्थ रूप मैं पहचानने लगा। श्री अनसूयाबाई का परिचय तो मुझे इसके पहले ही अच्छी तरह हो चुका था। हडतालियों की सभा रोज साबरमती नदी के किनारे एक पेड़ का छाया तले होने लगी। उसमें वे लोग सैकड़ो की तादाद में जमा होते थे। मैं उन्हें रोज प्रतिज्ञा का स्मरण कराता तथा शान्ति बनाये रखने और स्वाभिमान समझाता था। वे अपना 'एक टेक' का झंडा लेकर रोज शहर में घूमते थे और जुलूस के रूप में सभा में हाजिर होते थे।

यह हडताल इक्कीस दिन तक चली। इस बीच समय समय पर मैं मालिको से बातचीत किया करता था और उन्हें इन्साफ करने के लिए मनाता था। मुझे यह जवाब मिलता, 'हमारी भी तो टेक है न? हममे और हमारे मजदूरो में बाप बेटे का सम्बन्ध हैं। उसके बीच में कोई दखल दे तो हम कैसे सहन करे? हमारे बीच पंच कैसे?'

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