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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा

रौलट एक्ट और मेरा धर्म-संकट


मित्रों ने सलाह दी कि माथेरान जाने से मेरा शरीर शीध्र ही पुष्ट होगा। अतएव मैं माथेरान गया। किन्तु वहाँ का पानी भारी था, इसलिए मेरे सरीखे रोगी के लिए वहाँ रहना कठिन हो गया। पेचिश के कारण गुदाद्वार इतना नाजुक हो गया था कि साधारण स्पर्श भी मुझ से सहा न जाता था और उसमें दरारे पड़ गयी थी, जिससे मलत्याग के समय बहुत कष्ट होता था। इससे कुछ भी खाते हुए डर लगता था। एक हफ्ते में माथेरान से वापस लौटा। मेरी तबीयत की हिफाजत का जिम्मा शंकरलाला बैंकर ने अपने हाथ में लिया था। उन्होंने डॉ. दलाल से सलाह लेने का आग्रह किया। डॉ. दलाल आये। उनकी तत्काल निर्णय करने की शक्ति ने मुझे मुग्ध कर लिया। वे बोले, 'जब तक आप दूध न लेगें, मैं आपके शरीर को फिर से हृष्ट-पुष्ट न बना सकूँगा। उसे पुष्ट बनाने के लिए आपको दूध लेना चाहिये और लोहे तथा आर्सेनिक की पिचकारी लेनी चाहिये। यदि आप इतना करे, तो आपके शरीर को पुनः पुष्ट करने की गारंटी मैं देता हूँ।'

मैंने जवाब दिया, 'पिचकारी लगाइये, लेकिन दूध मैं न लूँगा।'

डॉक्टर ने पूछा, 'दूध के सम्बन्ध में आपकी प्रतिक्षा क्या है ?'

'यह जानकर कि गाय-भैस पर फूंके की क्रिया की जाती है, मुझे दूध से नफरत हो गयी है। और, यह सदा से मानता रहा हूँ कि दूध मनुष्य का आहार नहीं है। इसलिए मैंने दूध छोड़ दिया है।'

यह सुनकर कस्तूरबाई, जो खटिया के पास ही खडी थी, बोल उठी, 'तब तो आप बकरी का दूध ले सकते है।'

डॉक्टर बीच में बोले, 'आप बकरी का दूध ले, तो मेरा काम बन जाये।'

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