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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा


मेरी दलील यह थी कि दोनों प्रश्नो पर उनके अपने गुण-दोष की दृष्टि से विचार करना चाहिये। यदि खिलाफत के प्रश्न में सार हो, उसमें सरकार की ओर से अन्याय हो रहा हो तो हिन्दुओं को मुसलमानों का साथ देना चाहिये और इस प्रश्न के साथ गोरक्षा के प्रश्न को नहीं जोडना चाहिये। अगर हिन्दू ऐसी कोई शर्त करते है, तो वह उन्हें शोभा नहीं देगा। मुसलमान खिलाफत के लिए मिलनेवाली मदद के बदले में गोवध बन्द करे, तो वह उनके लिए भी शोभास्पद न होगा। पड़ोसी और एक ही भूमि के निवासी होने के नाते तथा हिन्दुओं की भावना का आदर करने की दृष्टि से यदि मुसलमान स्वतंत्र रूप से गोवध बन्द करे, तो यह उनके लिए शोभा की बात होगी। यह उनका फर्ज है और एक स्वतंत्र प्रश्न है। अगर यह फर्ज है और मुसलमान इसे फर्ज समझे, तो हिन्दू खिलाफत के काम में मदद दे या न दें, तो भी मुसलमानों को गोवध बन्द करना चाहिये। मैंने अपनी तरफ से यह दलील पेश की कि इस तरह दोनों प्रश्नो का विचार स्वतंत्र रीति से किया जाना चाहिये और इसलिए इस सभा में तो सिर्फ खिलाफत के प्रश्न की ही चर्चा मुनासिब है।

सभा को मेरी दलील पसन्द पड़ी। गोरक्षा के प्रश्न पर सभा में चर्चा नहीं हुई। लेकिन मौलाना अब्दुलबारी ने कहा, 'हिन्दू खिलाफत के मामले में मदद दे चाहे न दे, लेकिन चूंकि हम एक ही मुल्क के रहनेवाले है इसलिए मुसलमानों को हिन्दुओं के जज्बात की खातिर गोकुशी बन्द करनी चाहिये।' एक समय तो ऐसा मालूम हुआ कि मुसलमान सचमुच गोवध बन्द कर देंगे।

कुछ लोगों की यह सलाह थी कि पंजाब के सवाल को भी खिलाफत के साथ जोड़ दिया जाये। मैंने इस विषय में अपना विरोध प्रकट किया। मेरी दलील यह थी कि पंजाब का प्रश्न स्थानीय है, पंजाब के दुःख की वजह से हम हुकमत से सम्बन्ध रखनेवाले सन्धिविषयक उत्सव से अलग नहीं रह सकते। इस सिलसिले में खिलाफत के सवाल के साथ पंजाब को जोड देने से हम अपने सिर अविवेक का आरोप ले लेगे। मेरी दलील सबको पसन्द आयी।

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