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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा


उन्हीं मित्र में या किसी और ने मुझे सुझाया कि मैं मि. फ्रेडरिक पिंकट से मिलूँ। मि. पिंकट कंज्रवेटिव (अनुदार) दल के थे। पर हिन्दुस्तानियों के प्रति उनका प्रेम निर्मल और निःस्वार्थ था। कई विद्यार्थी उनसे सलाह लेते थे। अतएव उन्हें पत्र लिखकर मैंने मिलने का समय माँगा। उन्होंने समय दिया। मैं उनसे मिला। इस मुलाकात को मैं कभी भूल नहीं सका। वे मुझसे मित्र की तरह मिले। मेरी निराशा को तो उन्होंने हँस कर ही उड़ा दिया। 'क्या तुम मानते हो कि सबके लिए फीरोजशाह मेंहता बनना जरूरी हैं? फीरोजशाह मेंहता या बदरुद्दीन तैयबजी तो एक-दो ही होते हैं। तुम निश्चय समझो कि साधारण वकील बनने के लिए बहुत अधिक होशियारी की जरूरत नहीं होती। साधारण प्रामाणिकता और लगन से मनुष्य वकालत का पेशा आराम से चला सकता हैं। सब मुकदमे उलझनो वाले नहीं होते। अच्छा, तो यह बताओ कि तुम्हारा साधारण वाचन क्या है?'

जब मैंने अपनी पढ़ी हुई पुस्तको की बात की तो मैंने देखा कि वे थोड़े निराश हुए। पर यह निराशा क्षणिक थी। तुरन्त ही उनके चेहरे पर हँसी छा गयी और वे बोले, 'अब मैं तुम्हारी मुश्किल को समझ गया हूँ। साधारण विषयों की तुम्हारी पढ़ाई का बहुत कम हैं। तुम्हें दुनिया का ज्ञान नहीं हैं। इसके बिना वकील का काम नहीं चल सकता। तुमने तो हिन्दुस्तान का इतिहास भी नहीं पढ़ा हैं। वकील को मनुष्य का स्वभाव का ज्ञान होना चाहिये। उसे चहेरा देखकर मनुष्य को परखना आना चाहिये। साथ ही हरएक हिन्दुस्तानी को हिन्दुस्तान के इतिहास का भी ज्ञान होना चाहिये। वकालत के साथ इसका कोई सम्बन्ध नहीं हैं, पर तुम्हे इसकी जानकारी होनी चाहिये। मैं देख रहा हूँ कि तुमने के और मेंलेसन की 1857 के गदर की किबात भी नहीँ पढ़ी हैं। उसे तो तुम फौरन पढ़ डालो और जिन दो पुस्तकों के नाम देता हूँ, उन्हे मनुष्य की परख के ख्याल से पढ़ जाना। ' यौ कहकर उन्होंने लेवेटर और शेमलपेनिक की मुख-सामुद्रिक विद्या (फीजियोग्नॉमी) विषयक पुस्तकों के नाम लिख दिये।

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