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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा


'सो तो आप कुछ दिन रहने के बाद जान जायेंगे। इस देश में तो हमीं रह सकते हैं, क्योंकि हमे पैसे कमाने हैं। इसीलिए नाना प्रकार के अपमान सहन करते है और पड़े हुए हैं।' यो कहकर उन्होंने ट्रान्सवाल में हिन्दुस्तानियों पर गुजरने वाले कष्टो का इतिहास कह सुनाया।

इन अब्दुलगनी सेठ का परिचय हमें आगे और भी करना होगा। उन्होंने कहां, 'यह देश आपके समान लोगों के लिए नहीं हैं। देखिये, कल आपको प्रिटोरिया जाना हैं। वहाँ आपको तीसरे दर्जे में ही जगह मिलेगी। ट्रान्सवाल में नेटाल से अधिक कष्ट हैं। यहाँ हमारे लोगों को पहले या दूसरे दर्जे का टिकट ही नहीं दिया जाता।'

मैंने कहा, 'आपने इसके लिए पूरी कोशिश नहीं की होगी।'

अब्दुलगनी सेठ बोले, 'हमने पत्र-व्यवहार तो किया हैं, पर हमारे अधिकतर लोग पहले-दूसरे दर्जे में बैठना भी कहाँ चाहते हैं?'

मैंने रेलवे के नियम माँगे। उन्हें पढ़ा। उनमें इस बात की गुंजाइश थी। ट्रान्सवाल के मूल सूक्षमतापूर्वक नहीं बनाये जाते थे। रेलवे के नियमों का तो पूछना ही क्या था? मैंने सेठ से कहा, 'मैंने तो फर्स्ट क्लास में ही जाऊँगा। और वैसे न जा सका तो प्रिटोरिया यहाँ से 36 मील ही तो हैं। मैं वहाँ घोड़ागाड़ी करके चला जाऊँगा।'

अब्दुलगनी सेठ ने उसमें लगने वाले खर्च और समय की तरफ मेरा ध्यान खींचा। पर मेरे विचार से वे सहमत हुए। मैंने स्टेशन मास्टर को पत्र भेजा। उसमें मैंने अपने बारिस्टर होने की बात लिखी, यह भी सूचित किया कि मैं हमेशा पहले दर्जे में ही सफर करता हूँ, प्रिटोरिया तुरन्त पहुँचने की आवश्यकता पर भी उनका ध्यान खींचा, और उनके उत्तर की प्रतीक्षा करने जिनता समय मेरे पास नहीं रहेगा, अतएव पत्र का जवाब पाने के लिए मैं खुद ही स्टेशन पहुँचूगा और पहले दर्जे का टिकट पाने की आशा रखूँगा।

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