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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा


यों पत्नी के प्रति विषयासक्त होते हुए भी मैं किसी कदर कैसे बत सका, इसका एक कारण बता चुका हूँ। एक और भी बताने लायक हैं। सैकड़ों अनुभवों के सहारे मैं इस परिणाम पर पहुँच सका हूँ कि जिसकी निष्ठा सच्ची हैं, उसकी रक्षा स्वयं भगवान ही कर लेके हैं। हिन्दू-समाज में यदि बाल विवाह का घातक रिवाज भी हैं, तो साथ ही उससे मुक्ति दिलाने वाला रिवाज भी हैं। माता-पिता बालक वर-वधू को लम्बे समय तक एकसाथ नहीं रहने देते। बाल-पत्नी का आधे से अधिक समय पीहर में बीतता है। यहीं बात हमारे सम्बन्ध में भी हुई ; मतलब यह कि तेरह से उन्नीस साल की उमर तक छुटपुट मिलाकर कुल तीन साल से अधिक समय तक साथ नहीं रहे होंगे। छह- आठ महीने साथ रहते, इतने में माँ-बाप के घर का बुलावा आ ही जाता। उस समय तो वह बुलावा बहुत बुरा लगता था, पर उसी के कारण हम दोनों बच गये। फिर तो अठारह साल की उमर में विलायत गया, जिससे लम्बे समय का सुन्दर वियोग रहा। विलायत से लौटने पर भी हम करीब छह महीने साथ में रहे होंगे, क्योंकि मैं राजकोट और बम्बई के बीच जाता-आता रहता था। इतने में दक्षिण अफ्रिका का बुलावा आ गया। इस बीच तो मैं अच्छी तरह जाग्रत हो चुका था।

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